सुनैना

सुनैना के चित्रों में गोंड परंपराओं का सम्मान और आधुनिकता के संगम की झलक

गोंड समुदाय की चित्रकार सुनैना तेकाम के चित्रों में कला और संस्कृति का अद्वितीय संगम

भोपाल। मध्य प्रदेश जनजातीय संग्रहालय, अपनी अद्वितीय पहल 'शलाका' के अंतर्गत प्रदेश के जनजातीय चित्रकारों को एक व्यापक मंच प्रदान कर रहा है, जहां वे अपनी कला का प्रदर्शन और विक्रय कर सकते हैं। इस श्रृंखला की 52वीं प्रदर्शनी में गोंड समुदाय की युवा चित्रकार सुनैना तेकाम के बनाए गए चित्रों को प्रदर्शित किया गया है। यह प्रदर्शनी सह-विक्रय के लिए 30 अगस्त तक निरंतर चलेगी और इसमें सुनैना तेकाम की कला को प्रदर्शित किया गया है। यह उनके चित्रकला के क्षेत्र में प्रथम एकल प्रदर्शनी है, जो उनकी कला यात्रा के महत्वपूर्ण पड़ाव का प्रतीक है।



परंपरा और प्रकृति से जुड़ी कला

सुनैना तेकाम का जन्म मध्य प्रदेश के जनजातीय बहुल क्षेत्र डिंडोरी जिले के तीतराही ग्राम में हुआ। उनका बचपन जंगलों, पहाड़ों और प्रकृति के सान्निध्य में बीता, जिससे उनकी कला में प्रकृति का विशेष प्रभाव परिलक्षित होता है। खेती-किसानी वाले परिवार में पली-बढ़ी सुनैना, अपने पांच बहनों, एक भाई और परिवार के अन्य सदस्यों के बीच लाड़-प्यार में पलीं। कठिनाईयों के बावजूद, उन्होंने बारहवीं तक की शिक्षा प्राप्त की, जबकि उनके गांव में केवल प्राथमिक स्तर तक ही स्कूल था। आगे की पढ़ाई के लिए उन्हें मीलों पैदल चलकर स्कूल जाना पड़ता था, परंतु उन्होंने शिक्षा के प्रति अपनी दृढ़ता को बनाए रखा।


सचिन तेकाम के साथ नई शुरुआत

सुनैना का विवाह लगभग आठ वर्ष पूर्व उसी क्षेत्र के युवा गोंड चित्रकार सचिन तेकाम से हुआ, जो गोंड कला के मूर्धन्य चित्रकार स्व. जनगढ़सिंह श्याम के परिवार से आते हैं। विवाह के बाद, सुनैना ने अपने पति के चित्रकर्म में सहयोग करना शुरू किया। धीरे-धीरे सचिन तेकाम की प्रेरणा और प्रोत्साहन से उन्होंने स्वतंत्र रूप से चित्रकला में रुचि लेनी शुरू की। सचिन तेकाम के मार्गदर्शन में उनकी कला में निखार आया और वह अपनी खुद की पहचान बनाने में सक्षम हुईं। वर्तमान में, वह भोपाल में निवास कर रही हैं और अपनी दो बेटियों के साथ एक सुखी परिवार का हिस्सा हैं। सुनैना की इच्छा है कि वह अपनी पारम्परिक चित्रकला की विरासत को अपनी बेटियों को सौंपें।



गोंड कला का अद्वितीय प्रदर्शन

शलाका प्रदर्शनी के माध्यम से सुनैना तेकाम की कला को पहली बार दर्शकों के समक्ष प्रदर्शित किया जा रहा है। इस प्रदर्शनी में उनके चित्रों में वन्य जीवन, प्रकृति और अपने आसपास के परिवेश का गहरा प्रभाव दिखाई देता है। उनकी कला में प्रकृति के रंगों का जीवंत संयोजन देखने को मिलता है, जो उनकी गोंड संस्कृति और परंपराओं से प्रेरित है। यह प्रदर्शनी न केवल उनकी कला को एक नई पहचान देने का अवसर है, बल्कि जनजातीय कला को व्यापक मंच पर लाने का प्रयास भी है।


गोंड कला की महत्ता

गोंड कला, मध्य प्रदेश की समृद्ध जनजातीय परंपराओं का प्रतीक है। इसमें प्रकृति, वन्य जीवन और जनजातीय संस्कृति के प्रतीकात्मक चित्रण का प्रमुख स्थान है। सुनैना तेकाम की कला इस परंपरा का जीवंत प्रमाण है, जिसमें उन्होंने गोंड कला के तत्वों को आधुनिक दृष्टिकोण के साथ प्रस्तुत किया है। उनके चित्रों में रंगों का प्रयोग और बारीकियों का चित्रण गोंड कला के पारंपरिक रूप को नई ऊंचाइयों पर ले जाता है। यह प्रदर्शनी गोंड कला के महत्व को समझने और उसका सम्मान करने का एक सुनहरा अवसर प्रदान करती है।


कला को आगे बढ़ाने की दिशा में प्रयास

सुनैना तेकाम की इस पहली प्रदर्शनी के बाद, उनके आगे के प्रयासों पर भी नजर रहेगी। वह अपनी कला को और विकसित करना चाहती हैं और नई तकनीकों के साथ प्रयोग करना चाहती हैं, ताकि उनकी कला को और अधिक निखार मिले। इसके साथ ही, वह अपनी बेटियों को भी इस कला के प्रति प्रेरित कर रही हैं, जिससे गोंड कला की यह परंपरा अगली पीढ़ी तक सुरक्षित रह सके। उनकी इच्छा है कि गोंड कला को राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिले और इस दिशा में वह सतत प्रयासरत हैं।


एक नई शुरुआत का प्रतीक

शलाका प्रदर्शनी में सुनैना तेकाम की कला का प्रदर्शन उनके लिए एक नई शुरुआत का प्रतीक है। यह प्रदर्शनी उनके लिए केवल एक उपलब्धि नहीं है, बल्कि उनके कला यात्रा का एक महत्वपूर्ण पड़ाव भी है। उनकी कला में गोंड परंपराओं का सम्मान और आधुनिकता का संगम देखने को मिलता है। मध्य प्रदेश जनजातीय संग्रहालय की यह पहल जनजातीय कलाकारों के लिए एक महत्वपूर्ण मंच है, जहां वे अपनी कला को प्रदर्शित कर सकते हैं और उसे विक्रय कर सकते हैं। सुनैना तेकाम की इस पहली प्रदर्शनी के माध्यम से गोंड कला को नया आयाम मिला है और इससे जनजातीय कला के क्षेत्र में एक नई ऊर्जा का संचार हुआ है।

सुनैना तेकाम की सफलता उनकी कला यात्रा का एक महत्वपूर्ण पड़ाव है, और उनकी इस प्रदर्शनी से प्रेरित होकर अन्य जनजातीय कलाकार भी अपने कला को नई पहचान दिला सकते हैं। 'शलाका' प्रदर्शनी, जनजातीय कला के संरक्षण और प्रचार-प्रसार का एक उत्कृष्ट माध्यम बन चुका है, जो सुनैना तेकाम जैसी कलाकारों को अपनी कला यात्रा को और आगे बढ़ाने में मदद कर रहा है।

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