इसके बाद मांगत चन्द्र खिलौना (बाललीला गीत) और श्रीकृष्ण लीला गीत की प्रस्तुति ने भक्तों के मन में भगवान श्रीकृष्ण की बाललीलाओं की स्मृतियां ताजा कर दीं। श्रीकृष्ण विवाह गीत और श्रीराधा रानी-श्रीकृष्ण की होली (राई गीत) सहित अन्य कई भजन-गीतों की प्रस्तुतियां हुईं, जिनमें श्रोताओं ने भक्तिरस का आनंद लिया।
मथुरा की रासलीला का मनमोहक मंचन
श्रीकृष्ण पर्व पर मथुरा से आई वंदना श्री और उनके 25 कलाकारों की टोली ने रासलीला के माध्यम से भगवान श्रीकृष्ण की 7 अलौकिक लीलाओं का जीवंत मंचन किया। इस 1 घंटे 45 मिनट की प्रस्तुति में, बाल श्रीकृष्ण की लीलाओं से लेकर गोवर्धन लीला तक का चित्रण किया गया, जिसने उपस्थित दर्शकों को भावविभोर कर दिया।
रासलीला की शुरुआत बाल श्रीकृष्ण की जन्म लीला से हुई, जिसमें दिखाया गया कि भगवान विष्णु से श्रीकृष्ण के रूप में प्रकृट होने तक 5 स्वरूपों का वर्णन किया गया। इस लीला में जब श्रीकृष्ण का जन्म हुआ, तो सारी धरती पर आनंद का माहौल छा गया। इसके बाद बाल लीला में श्रीकृष्ण के माखन चुराने का दृश्य प्रस्तुत किया गया, जिसमें बाल श्रीकृष्ण को माखन चुराते हुए मइया यशोदा द्वारा पकड़ा गया। इस दृश्य ने दर्शकों को हंसी से लोटपोट कर दिया और भगवान की बाल लीलाओं की अद्भुत मिठास का अनुभव कराया।
रासलीला के अगले प्रसंग में गोपी उलाहना लीला का मंचन किया गया, जिसमें गोपियों और श्रीकृष्ण के बीच के संवादों और नंद के घर हो रहे उत्सव का सुंदर चित्रण किया गया। इसके बाद, ओखल लीला, रास लीला और गोवर्धन लीला के प्रसंगों का भी मंचन किया गया, जिसने दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया।
गोवर्धन लीला में भगवान श्रीकृष्ण द्वारा गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी अंगुली पर उठाने और इंद्र के प्रकोप से गोकुलवासियों की रक्षा करने की कथा का भावपूर्ण चित्रण किया गया। इस प्रसंग ने भगवान श्रीकृष्ण की अद्वितीय शक्ति और उनकी प्रजा के प्रति उनके समर्पण को दर्शाया।
इस तीन दिवसीय श्रीकृष्ण पर्व के दौरान, जनजातीय संग्रहालय का वातावरण पूरी तरह से भक्तिमय हो गया। उपस्थित दर्शकों ने भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं का आनंद लेते हुए उनकी भक्ति में लीन हो गए। श्रोताओं ने कलाकारों की प्रशंसा करते हुए कहा कि उनकी प्रस्तुतियां भगवान श्रीकृष्ण की दिव्यता और उनकी लीलाओं की महिमा को जीवंत रूप में सामने लाती हैं।
कार्यक्रम के समापन पर आयोजकों और कलाकारों को धन्यवाद ज्ञापन के साथ विदा किया गया। इस अवसर पर संस्कृति विभाग के अधिकारियों ने कहा कि इस प्रकार के आयोजन न केवल हमारी धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर को संजोए रखते हैं, बल्कि आने वाली पीढ़ियों को भी हमारी समृद्ध परंपराओं से अवगत कराते हैं।
जनजातीय संग्रहालय में आयोजित श्रीकृष्ण पर्व ने एक बार फिर से यह सिद्ध कर दिया कि भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं और उनकी भक्ति का महत्व आज भी अटूट है। यह आयोजन प्रदेश के विभिन्न हिस्सों में भक्ति और संस्कृति की धारा को प्रवाहित करने में सफल रहा और इसने श्रीकृष्ण जन्माष्टमी को एक अविस्मरणीय अनुभव बना दिया।
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