संभावना

संभावना गतिविधि में कलाकारों ने दी काठी और गदली नृत्य की मनमोहक प्रस्तुति

जनजातीय संग्रहालय में रविवार को कार्यक्रम का किया गया आयोजन, खंडवा और बैतूल के कलाकारों ने किया नृत्य

भोपाल। मध्य प्रदेश जनजातीय संग्रहालय में नृत्य, गायन और वादन पर केंद्रित विशेष गतिविधि "संभावना" का आयोजन किया जा रहा है, जो हर रविवार को लोक और जनजातीय परंपराओं के जीवंत प्रदर्शन के लिए मंच प्रदान करता है। 8 सितंबर को आयोजित इस कार्यक्रम में खंडवा के रामदास साकले और उनके साथियों द्वारा काठी नृत्य की प्रस्तुति दी गई। इसके बाद बैतूल के दिनेश कास्देकर और उनके साथी कलाकारों ने कोरकू जनजाति के गदली नृत्य का प्रदर्शन किया।

काठी नृत्य: निमाड़ की सांस्कृतिक धरोहर

काठी नृत्य मध्य प्रदेश के निमाड़ क्षेत्र का एक प्रमुख लोकनृत्य है, जिसका संबंध देवी पार्वती की तपस्या और मातृ पूजा से है। यह नृत्य-नाट्य देव प्रबोधिनी एकादशी से शुरू होता है और महाशिवरात्रि तक चलता है। काठी नृत्य की सबसे खास विशेषता इसका अनूठा श्रृंगार है। नर्तक गले से लेकर पैरों तक लाल चोले वाला बागा या बाना पहनते हैं, जो उन्हें एक विशिष्ट पहचान देता है। कमर में एक खास वाद्य यंत्र ‘ढांक्य’ बांधा जाता है, जिसे मासिंग के डंडे से बजाया जाता है।

इस नृत्य में मातृ पूजा का विशेष महत्व है और इसका प्रदर्शन धार्मिक आस्था से जुड़ा हुआ है। निमाड़ क्षेत्र के विभिन्न गांवों में इसे प्रमुखता से मनाया जाता है, जहां लोग देवताओं को प्रसन्न करने के लिए इस नृत्य का आयोजन करते हैं। रामदास साकले और उनके साथियों की प्रस्तुति ने इस नृत्य की भव्यता और आस्था को जीवंत कर दिया। 


कोरकू जनजाति का गदली नृत्य: सरलता और सौंदर्य का प्रतीक

इस कार्यक्रम के अगले चरण में दिनेश कास्देकर और उनके साथियों ने कोरकू जनजाति के गदली नृत्य की मनोहारी प्रस्तुति दी। कोरकू जनजाति मध्य प्रदेश के बैतूल जिले में बसी है और उनकी सांस्कृतिक धरोहर में गदली नृत्य एक प्रमुख स्थान रखता है। यह नृत्य मुख्य रूप से विवाह और अन्य महत्वपूर्ण सामाजिक अवसरों पर किया जाता है।

गदली नृत्य की वेशभूषा इसकी सादगी और सुरुचिपूर्ण ढंग से पहचानी जाती है। पुरुष सफेद कपड़े और सिर पर लाल पगड़ी और कलंगी पहनते हैं, जबकि महिलाएं लाल, हरी, नीली और पीली किनारी वाली साड़ी धारण करती हैं। नृत्य के दौरान पुरुषों के हाथ में घुंघरूमाला और पंछा होता है, जबकि महिलाएं छोटे लोक वाद्य चिटकोरा बजाते हुए ताल और लय के साथ कदम मिलाती हैं। ढोलक की थाप और बांसुरी की मधुर धुन पर नर्तक-नर्तकियों का गोल घेरे में नृत्य करना इस नृत्य का प्रमुख आकर्षण है।

गदली नृत्य में स्त्रियां और पुरुष मिलकर एक अनूठी सांस्कृतिक पहचान को जीवंत करते हैं। ढोलक की लय पर कोरकू पुरुष और महिलाएं हाथों और पैरों की विविध मुद्राओं में नृत्य करते हैं, जो उनकी सांस्कृतिक समृद्धि का प्रतीक है। 


सांस्कृतिक धरोहर का जीवंत प्रदर्शन

जनजातीय संग्रहालय में आयोजित 'संभावना' कार्यक्रम का उद्देश्य मध्य प्रदेश की बहुरंगी लोक और जनजातीय परंपराओं को सामने लाना और संरक्षित करना है। यह कार्यक्रम प्रतिदिन दोपहर 2 बजे से होता है, जिसमें न केवल मध्य प्रदेश के पांच प्रमुख लोकांचलों और सात प्रमुख जनजातियों की कला परंपराओं को प्रस्तुत किया जाता है, बल्कि अन्य राज्यों की सांस्कृतिक धरोहरों को भी दर्शकों के समक्ष लाया जाता है।

इस अनूठी पहल से लोगों को विभिन्न जनजातीय और लोक कलाओं को समझने और सराहने का अवसर मिलता है। यह आयोजन न केवल सांस्कृतिक संरक्षण का माध्यम है, बल्कि इससे युवा पीढ़ी को अपनी जड़ों से जुड़ने और सांस्कृतिक धरोहर को सहेजने की प्रेरणा मिलती है।

जनजातीय संग्रहालय के माध्यम से यह प्रयास किया जा रहा है कि कला, नृत्य और संगीत के विभिन्न रूपों को न केवल संरक्षित किया जाए, बल्कि उन्हें नई पीढ़ी के बीच लोकप्रिय भी बनाया जाए। संग्रहालय के इस आयोजन ने जनजातीय कलाकारों और दर्शकों के बीच एक सांस्कृतिक संवाद की नींव रखी है, जो आने वाले समय में और भी सशक्त होगी।

संग्रहालय का सांस्कृतिक सरोकार

मध्य प्रदेश जनजातीय संग्रहालय में आयोजित हो रहे 'संभावना' कार्यक्रम के माध्यम से विभिन्न लोक नृत्य और जनजातीय कलाओं का प्रदर्शन किया जा रहा है। इस प्रकार के आयोजन से समाज के विभिन्न तबकों के लोग इन पारंपरिक नृत्यों और कलाओं से परिचित हो रहे हैं। इसके अलावा यह कार्यक्रम विभिन्न राज्यों की सांस्कृतिक विविधता को भी दर्शकों के सामने लाता है, जिससे लोगों को अन्य क्षेत्रों की परंपराओं और कला रूपों को समझने का अवसर मिलता है।

संग्रहालय के निर्देशक और कार्यक्रम आयोजक अमिताभ पांडे ने बताया कि इस प्रकार के कार्यक्रमों का आयोजन भारतीय संस्कृति के संरक्षण और संवर्धन के लिए अत्यंत आवश्यक है। इससे न केवल जनजातीय कलाकारों को अपनी कला को प्रदर्शित करने का मंच मिलता है, बल्कि दर्शकों को भी अपनी सांस्कृतिक जड़ों से जुड़ने का अवसर मिलता है।

जनजातीय कलाओं का उत्सव 

जनजातीय संग्रहालय में आयोजित "संभावना" कार्यक्रम लोक और जनजातीय कलाओं का एक महत्वपूर्ण उत्सव है, जो दर्शकों को भारतीय संस्कृति की गहरी जड़ों से परिचित कराता है। निमाड़ का काठी नृत्य और बैतूल की कोरकू जनजाति का गदली नृत्य दोनों ही प्रस्तुतियां भारतीय जनजातीय और लोक कला की विविधता और समृद्धि को दर्शाते हैं। ऐसे आयोजनों के माध्यम से सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित और बढ़ावा दिया जा रहा है, जो आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा स्रोत बनेगा।

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