स्वाभिमान

स्वाभिमान की लड़ाई : 'रीढ़ की हड्डी' नाटक ने समाज की रूढ़िवादी सोच को दी चुनौती

दीक्षा वेलफेयर कल्चर सोसायटी द्वारा 'रीढ़ की हड्डी' का मंचन, स्वाभिमान और रूढ़िवादी प्रथाओं के खिलाफ लड़ाई की प्रेरक कहानी

भोपाल। दीक्षा वेलफेयर कल्चर सोसायटी ने शुक्रवार शाम शिवाजी नगर स्थित सेवा भारती सदन, आनंद धाम में जगदीश चंद्र माथुर द्वारा लिखित नाटक "रीढ़ की हड्डी" का सफलतापूर्वक मंचन किया। इस नाटक का निर्देशन राजश्री शर्मा द्वारा किया गया, जिसमें सह-निर्देशन की भूमिका सीमा मोर ने निभाई। इस आयोजन का उद्देश्य न केवल सांस्कृतिक संवर्धन था, बल्कि समाज में व्याप्त रूढ़िवादी सोच और परंपराओं के खिलाफ एक सशक्त संदेश देना भी था। 

दीक्षा वेलफेयर कल्चर सोसायटी पिछले 20 वर्षों से नाटक, नृत्य और सांस्कृतिक कार्यक्रमों के माध्यम से समाज में सकारात्मक बदलाव लाने का कार्य कर रही है। इस बार भी सोसायटी ने 'रीढ़ की हड्डी' नाटक के माध्यम से एक महत्वपूर्ण सामाजिक मुद्दे को उठाया। नाटक की कहानी एक पढ़ी-लिखी लड़की के जीवन पर केंद्रित है, जो अपने स्वाभिमान और आत्मसम्मान के लिए संघर्ष करती है। 


नाटक की कहानी: नाटक 'रीढ़ की हड्डी' में दिखाया गया कि जिस प्रकार हमारा शरीर रीढ़ की हड्डी पर आधारित होता है, उसी प्रकार हमारा जीवन स्वाभिमान और आत्मसम्मान पर टिका होता है। नाटक की मुख्य पात्र एक पढ़ी-लिखी लड़की है, जो समाज की रूढ़िवादी प्रथाओं और सोच के खिलाफ संघर्ष करती है। इस नाटक में यह दर्शाया गया कि समाज में आज भी ऐसे लोग हैं, जो लड़कियों की पढ़ाई-लिखाई और उनके आत्मसम्मान पर सवाल उठाते हैं। वहीं दूसरी ओर, एक अनपढ़ लड़का, जो कोई भी काम नहीं करता, फिर भी उसे समाज में एक विशेष स्थान मिलता है, केवल इसलिए कि वह पुरुष है।

नाटक में इस मुद्दे को बड़े ही संवेदनशील और प्रभावी ढंग से प्रस्तुत किया गया। नाटक की कहानी ने दर्शकों को समाज की संकीर्ण सोच और रूढ़िवादी परंपराओं पर विचार करने पर मजबूर कर दिया। नाटक के माध्यम से यह संदेश दिया गया कि स्वाभिमान और आत्मसम्मान जीवन के आधार हैं, जिन्हें किसी भी कीमत पर कायम रखा जाना चाहिए।


नाटक का प्रभाव: नाटक 'रीढ़ की हड्डी' ने दर्शकों के बीच एक गहरी छाप छोड़ी। नाटक के संवाद, पात्रों की भावनाएं और उनके संघर्ष ने दर्शकों को भावुक कर दिया। नाटक के अंत में दर्शकों ने तालियों की गड़गड़ाहट के साथ कलाकारों का अभिवादन किया।

आयोजन का उद्देश्य: राजश्री शर्मा और सीमा मोर के निर्देशन में इस नाटक का आयोजन का मुख्य उद्देश्य समाज में स्वाभिमान और आत्मसम्मान के महत्व को उजागर करना था। दीक्षा वेलफेयर कल्चर सोसायटी के आयोजकों का मानना है कि कला के माध्यम से समाज में व्याप्त रूढ़िवादिता और संकीर्ण सोच को चुनौती दी जा सकती है और लोगों को जागरूक किया जा सकता है।

समाज में बदलाव की दिशा: इस नाटक के माध्यम से दीक्षा वेलफेयर कल्चर सोसायटी ने यह साबित कर दिया कि सांस्कृतिक कार्यक्रम केवल मनोरंजन का साधन नहीं होते, बल्कि वे समाज में सकारात्मक बदलाव लाने का एक सशक्त माध्यम भी हो सकते हैं।


हर चुनौती का किया जा सकता है सामना 

'रीढ़ की हड्डी' नाटक ने यह साबित किया कि अगर व्यक्ति के पास आत्मसम्मान और स्वाभिमान है, तो वह किसी भी चुनौती का सामना कर सकता है। दीक्षा वेलफेयर कल्चर सोसायटी का यह प्रयास निश्चित रूप से समाज में एक सकारात्मक संदेश देने वाला रहा। ऐसे नाटकों की आवश्यकता आज के समाज में और भी बढ़ गई है, जहां व्यक्ति को अपने अधिकारों और कर्तव्यों का पूरा ज्ञान होना चाहिए।

इस आयोजन ने यह भी साबित कर दिया कि भोपाल की सांस्कृतिक धरोहर केवल पुरानी परंपराओं तक सीमित नहीं है, बल्कि यह आज भी समाज में बदलाव लाने के लिए प्रासंगिक है। दीक्षा वेलफेयर कल्चर सोसायटी ने इस नाटक के माध्यम से अपने उद्देश्य को पूर्ण करने में सफलता पाई है और भविष्य में भी इस तरह के सार्थक सांस्कृतिक आयोजनों की उम्मीद की जा सकती है।  

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