मालवी

मालवी लोक गीतों की मधुर धुनों से गूंजा भारत भवन, बुंदेलखंड के पारंपरिक राई लोकनृत्य देखकर झूम उठे दर्शक

आठ दिवसीय 42वें वर्षगांठ समारोह का समापन, अंतिम दिन 95 वर्षीय कलाकार ने दी लोकनृत्य राई की प्रस्तुति

भोपाल। भारत भवन में आयोजित विविध कलाओं पर केंद्रित 42वें वर्षगांठ समारोह का समापन मंगलवार को हुआ। समारोह के अंतिम दिन पूर्वरंग के मंच पर एक तरफ जहां मालवी लोकगीतों की मधुर धुनों की गूंज सुनाई दी वहीं, दूसरी ओर बुंदेलखंड के पारंपरिक राई लोकनृत्य की प्रस्तुति हुई। इसे महज एक संयोग ही कहा जा सकता है कि लगभग 42 वर्ष पहले जब भारत भवन का उद्घाटन हुआ उस समय पद्मश्री लोक कलाकार श्रीराम सहाय पांडे बतौर मुख्य अतिथि उपस्थित थे और 42वें वर्षगांठ समारोह का समापन भी उन्हीं के नृत्य प्रस्तुति के साथ हुआ। समापन समारोह अवसर पर भारत भवन के मुख्य प्रशासनिक अधिकारी श्री प्रेम शंकर शुक्ल ने सभी कलाकारों का आभार प्रकट करते हुए कहा कि यह मेरे और हम सभी के लिए भावुकता का क्षण है। श्री शुक्ल ने कहा कि भारत भवन हमेशा एक नई दृष्टि के साथ कार्य करने वाला संस्थान है। वर्षगांठ समारोह का यह आयोजन उसी श्रृंखला का एक हिस्सा है। 


ऋतु गीत से शुरू हुई प्रस्तुति

देर शाम शुरू हुई पारंपरिक कलाओं पर आधारित प्रस्तुति का आगाज उज्जैन से आई लोकगीत गायिका श्रीमती स्वाति उखले ने मालवी लोकगीतों की प्रस्तुति के साथ किया। इस दौरान श्रीमती स्वाति ने अपने 7 सहयोगी कलाकारों के साथ बसंत, होली पर आधारित गीतों की खुबसूरत प्रस्तुति दी। प्रस्तुति के दौरान लोकगायिका श्रीमती स्वाति ने ऋतु गीत लाग्यो है मास आषाढ़... को सुनाया। 


इस तरह आगे बढ़ी प्रस्तुति

लोकगायिका ने प्रस्तुति के अगले क्रम में श्रृंगार गीत बनारे मत कर नगरी में धूम..., बसंत गीत हारे आयो-आयो रे ये मास बसंद आये...सहित अन्य गीतों की प्रस्तुति दी। अपनी इस सांगीतिक प्रस्तुति का समापन श्रीमती स्वाति उखले ने होली गीत होली खेलो भरतार रंग रसिया... गीत के साथ किया। इस प्रस्तुति में हारमोनियम पर सोहन पवार, तबले पर पुष्पेन्द्र श्रीवास, ढोलक पर गगन जोहरी, मरकस पर सुदीप उखले और सहगायन पर गायित्री पवार और प्रियंका सेन ने संगत दी। 


95 वर्षीय कलाकार ने दी राई नृत्य की प्रस्तुति

वर्षगांठ समारोह की अंतिम प्रस्तुति 95 वर्षीय पद्श्री कलाकार श्रीराम सहाय पांडे एवं साथी कलाकारों की राई प्रस्तुति के नाम रही। 17 सदस्यीय कलाकारों के दल के साथ श्रीराम सहाय ने बुंदेलखंड की पारंपरिक लोकनृत्य राई की प्रस्तुति दी। पारंपरिक वाद्ययंत्र मृदंग, टिमकी, ढपला, मजीरा संग बुंदेलखंड के लोकगीतों से सजी इस प्रस्तुति ने दर्शकों को अंत तक बांधे रखा। इस प्रस्तुति में विवाह और बच्चे के जन्म और अलग-अलग आयोजन में होने वाले गीतों पर आधारित प्रस्तुति दी। बुन्देलखण्ड के कई इलाकों में राई नृत्य बेहद लोकप्रिय है, खुशी के मौकों से लेकर मंच तक इसकी धूम रहती है। 


1964 में राई को मिला मंच

लोक कलाकार श्रीराम सहाय पांडे ने बताया कि वर्ष 1964 में आकाशवाणी भोपाल द्वारा भोपाल के रवींद भवन में रंगवार असव में कहें राई नृत्य के लिए बुलाया गया। यह उनकी पहली मंचीय प्रस्तुति रही है। उसके बाद से निरंतर ही वह इस लोकनृत्य को गे बढ़ाने और संरक्षण देने का काम कर रहे हैं।

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