ब्रह्म

ब्रह्म अनुभूति का विषय है, जो केवल शक्ति के माध्यम से ही अनुभव किया जा सकता है : श्री एम

एकात्म पर्व के अंतर्गत शंकर व्याख्यानमाला, शंकर संगीत, चित्र प्रदर्शनी, बुक स्टॉल व एकात्म संवाद का आयोजन, पद्मभूषण श्रीएम के साथ प्रसिद्ध फिल्म अभिनेता व निर्देशक नितीश भारद्वाज एकात्मता की समसामयिक प्रासंगिकता पर संवाद

भोपाल। संस्कृति विभाग अंतर्गत आचार्य शंकर सांस्कृतिक एकता न्यास द्वारा भारत भवन में दो दिवसीय एकात्म पर्व अंतर्गत 70वीं शंकर व्याख्यानमाला का आयोजन किया गया है, जिसके पहले दिन 17 अगस्त को ‘शक्ति एवं अद्वैत‘ विषय पर द सत्संग फाउंडेशन के संस्थापक पद्मभूषण श्रीएम का सारस्वत प्रबोधन हुआ। इस दौरान प्रमुख सचिव, संस्कृति एवं आचार्य शंकर सांस्कृतिक एकता न्यास के न्यासी सचिव शिव शेखर शुक्ला एवं अन्य अधिकारी, कर्मचारी, दर्शक और श्रोता उपस्थित रहे।  


कार्यक्रम का शुभारंभ आचार्य शंकर की छायाचित्र पर पुष्प अर्पण, दीप प्रज्जवलन  एवं वक्ता, कलाकारों के स्वागत से किया गया। इसके बाद कार्यक्रम में स्वागत उद्बोधन देते हुए प्रमुख सचिव, संस्कृति एवं आचार्य शंकर सांस्कृतिक एकता न्यास के न्यासी सचिव शिव शेखर शुक्ला ने कहा कि शंकर व्याख्यानमाला में देश-विदेश के विद्वान साधु- संतों, विद्वानों और विषय विशेषज्ञों द्वारा अद्वैत वेदांत पर विचार एवं मार्गदर्शन प्राप्त होता रहा है। एकात्म धाम एवं अद्वैत संग्रहालय का निर्माण किया जा रहा है, जिससे वर्तमान पीढ़ी को अद्वैत वेदांत से परिचित कराया जा सके। अगले क्रम में माधवी मधुकर झा एवं साथी द्वारा आचार्य शंकर विरचित देवी स्तोत्रों का गायन किया गया। झा ने आनंद लहरी, भवानी अष्टक, गौरी दशकम्, सौंदर्य लहरी, महिषासुर मर्दिनी स्तोत्र का गायन किया।

शक्ति और अद्वैत वेदांत पर संबोधित करते हुए श्रीएम ने कहा कि मैं सौभाग्यशाली हूं कि जिस भूमि में आचार्यशंकर जी का जन्म हुआ मैं भी उसी भूमि से आता हूँ। शंकर जब अपनी जन्मभूमि से निकले और पूरे राष्ट्र का भ्रमण किया तो उस समय का एक विचार आता है कि शंकर ने कि भाषा में लोगों से संवाद किया था। तब ध्यान में आता है कि वह भाषा हिन्दी तो नहीं थी, वह संस्कृत थी। जिस भाषा में शंकराचार्य ने पूरे देश को जोड़ा उस संस्कृत भाषा को राष्ट्रभाषा बनाना चाहिए।


उन्होंने आगे कहा कि मैं केवल अनुभव के आधार पर बात करने आया हूं। मैं कभी कोई संस्कृत विद्यालय नहीं गया लेकिन वेदों का जो भी ज्ञानार्जन मैंने किया है वह मेरे गुरु महेश्वरनाथ बाबा जी से प्राप्त हुआ है। वह कभी अपने साथ कोई ग्रंथ नहीं रखते थे उन्हें सभी वेदवाणी कंठस्थ थीं। क्योंकि ब्रह्म अनुभूति का विषय है जो केवल शक्ति के माध्यम से ही अनुभव किया जा सकता है। शक्ति के आभाव में परब्रह्म को अनुभूत नहीं किया जा सकता है। इसलिए शक्ति और ब्रह्म अलग नहीं हैं वह एक ही हैं। हमारा अज्ञान उसे भिन्न देखता है। जिस प्रकार अग्नि और गर्मी अलग नहीं है। दोनों एक हैं लेकिन हम अपने अविवेक के कारण दोनों को अलग समझ बैठते हैं। उसी तरह परब्रह्म और माया अर्थात शक्ति एक ही हैं, वह अलग नहीं हैं। जब भी हम अद्वैत वेदांत की बात करते हैं तो सबसे पहले भगवन आद्यशंकराचार्य जी का स्मरण ही आता है क्योंकि उन्होंने अद्वैत वेदांत की व्याख्या को सरलीकृत रूप में भाष्यीकृत किया है। अद्वैत वेदांत का मूल वाक्य है "ब्रह्म सत्यं जगत मिथ्या" अर्थात केवल ब्रह्म ही सत्य है, जगत जो हम देखते हैं वह सत्य नहीं है।

उन्होंने आगे कहा कि वेदांत अध्ययन के लिए केनोपनिषद अत्यंत आवश्यक उपनिषद है, वह सामवेद से लिया गया है। सामवेद महिमा को स्वयं श्रीकृष्ण ने गीता में उल्लेखित करते हुए कहा है कि वेदों में मैं सामवेद हूं। संसार में जितना भी संगीत है वह सामवेद से ही आया है। सामवेद की व्याख्या केनोपनिषद में है और जब इस केनोपनिषद को पढ़ेंगे तो ज्ञात होता है कि उसके प्रारंभ में ही शक्ति की व्याख्या है। उसमें प्रारंभ में ही पूछा गया है कि वह क्या है जिससे सब सक्रिय होता है।  मन, बुद्धि और प्राण का प्रथम चलन किसके माध्यम से होता है। तब वहां शक्ति की महिमा सामने आती है।


अहंकार पर आधारित कहानी सुनाते हुए कहा कि एक मूर्तिकार था और वह  मूर्तिकार मंदिर में मूर्ति निर्माण का कार्य कर रहा था। एक दिन मंदिर के पुजारी ने उससे उसकी मृत्यु का समय बताया, तो उस  मूर्तिकार ने पुजारी से मृत्यु से बचने के लिए समाधान मांगा। तब पुजारी ने मूर्तिकार को उसी के जैसे दिखने वाली दो अलग-अलग मूर्ति को तैयार करने के लिए कहा और करीब तीन महीने में उसने अपनी जैसे दिखने वाली दो मूर्ति को बनाया। यम का दूत जब उसे यम लोक ले जाने के लिए आया तो वह भ्रमित हो गया और शिल्पकार की मृत्यु का समय निकल जाता है और वह यम का दूत यम लोक लौट जाता है। वह जाकर यम को सब बताता है। यम कहते हैं कि तीन माह बाद फिर उस शिल्पकार की मृत्यु का समय आयेगा। जब उसे लेने जाना तो बता कर जाना। तीन माह के बाद वह समय आया और यम का दूत शिल्पकार को लेने जाता है और तीन मूर्ति शिल्प के पास खड़े होकर शिल्प की सुन्दरता और उसके सौंदर्य की प्रशंसा करता है। तभी वह शिल्पकार अहम में आकर कहता है कि यह शिल्प उसने बनाया है। तभी यम का दूत उस शिल्पकार को पहचान लेता है और उसे यम लोक ले जाता है।



प्रदर्शनी एवं बुक स्टॉल भी 

इस अवसर पर “शक्ति” प्रदर्शनी का आयोजन किया गया है, जिसमें आचार्य शंकर प्रवर्तित अद्वैत वेदान्त दर्शन में शक्ति के स्थान पर प्रकाश डाला गया है। साथ ही में आचार्य शंकर प्रणीत शक्ति तत्त्व पर आधारित स्तोत्र सौन्दर्यलहरी पर चित्र भी प्रदर्शित किये गये। कर्णाटक के मैसूर के गंजिफा शैली के प्रसिद्ध चित्रकार रघुपति भट्ट के सौन्दर्यलहरी स्तोत्र श्री भट्ट द्वारा बनाये गये 25 चित्रों को सौन्दर्यलहरी के श्लोक और अर्थ सहित प्रदर्शनी में चित्रों को प्रदर्शित किया है। कार्यक्रम में अद्वैत वेदांत एवं शक्ति पर आधारित बुक स्टॉल भी लगाये गये हैं।

वक्ता परिचय 

ज्ञात हो कि पद्म भूषण श्री एम (मुमताज अली खान) प्राचीन नाथ परंपरा के आचार्य, समाज सुधारक, शिक्षाविद , लेखक एवं वैश्विक वक्ता है। आपने गुरु महेश्वरनाथ जी के साथ हिमालय में दीर्घकाल तक भ्रमण उपरांत, गुरु आज्ञा अनुसार भारतवर्ष के महान चिंतको और गुरुओं से अन्य परम्पराओं एवं ग्रंथों की शिक्षा ग्रहण की। उन्होंने आध्यात्मिक साधकों के लिए 20 वर्ष पहले द सत्संग फाउण्डेसन की स्थापना की। वर्ष 2020 में भारत सरकार ने उन्हें पद्मभूषण से सम्मानित किया।

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