भोपाल। मध्य प्रदेश शासन के संस्कृति विभाग द्वारा आयोजित तीन दिवसीय श्रीकृष्ण पर्व, जनजातीय संग्रहालय में भक्ति और कला के संगम का अद्भुत उदाहरण बना। श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के पवित्र अवसर पर राज्य के 16 आध्यात्मिक स्थलों पर आयोजित इस पर्व के अंतिम दिन, शुभम यादव और मथुरा की वंदना श्री सहित अन्य कलाकारों ने अपने भावपूर्ण प्रदर्शन से दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया।
कार्यक्रम की शुरुआत शुभम यादव और उनके साथी कलाकारों द्वारा लोकगायन से हुई। शुभम ने श्री गणेश और मां शारदा की वंदना से शुभारंभ किया, शारदा भवानी मां निहारियो..., दया की नजर डारियो..., से प्रस्तुतियों का आगाज हुआ। इसके बाद उन्होंने बुंदेली शैली में श्रीकृष्ण जन्म के भजन गाकर श्रद्धालुओं को कृष्ण जन्म की लीलाओं से जोड़ा। चलो सखी गोकुल में भयो नंदलाला..., गीत ने जनजातीय सभागार को भक्तिरस में सराबोर कर दिया। बारिश की फुहारों के बीच, शुभम ने जब पकड़ लए राधा ने दधी माखन के चोर..., जैसे लोकगीत प्रस्तुत किए, तो दर्शक भाव-विभोर होकर झूम उठे। शुभम के साथ हरीश विश्वकर्मा, संजय यादव और महेंद्र सिंह चौहान ने सह-गायक के रूप में और राजेश मालवीय ने झेका वादन में संगत दी, जिससे कार्यक्रम की प्रस्तुति और भी जीवंत हो गई।
विगत दो दिनों से श्रीकृष्ण की लीलाओं का आनंद ले रहे दर्शकों के लिए पर्व का अंतिम दिन विशेष रहा। मथुरा की वंदना श्री और उनके साथी कलाकारों ने भक्त-भगवंत लीला प्रस्तुत कर दर्शकों को भगवान और भक्त के प्रेम की अनोखी छटा से परिचित कराया। भगवान श्रीकृष्ण और उनके भक्तों के बीच के अनन्य प्रेम का यह प्रदर्शन, दर्शकों के हृदय में भक्ति की लहर उत्पन्न कर गया।
लीला की शुरुआत बांके बिहारी तेरी आरती गाऊं..., के साथ हुई, जिसमें भगवान श्रीकृष्ण की आरती और उनकी मनोहारी झांकी का प्रदर्शन हुआ। इसके बाद मीरा बाई की कथा को मंचित किया गया, जिसमें मीरा के बचपन से लेकर वृंदावन में उनके प्रवास की कहानी को दर्शाया गया। छोटी सी उम्र में मीरा की प्रेममय भक्ति ने प्रभु श्रीकृष्ण को प्रसन्न कर दिया और उन्होंने कटोरे से दूध पीकर उनकी भक्ति को स्वीकार किया। इस दृश्य ने दर्शकों को आत्मा और परमात्मा के बीच के प्रेम का साक्षात अनुभव कराया।
अगले दृश्य में जनाबाई की कथा को दिखाया गया, जिसमें भगवान विठ्ठल उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर स्वयं जनाबाई के घर के कार्यों में हाथ बंटाते हैं और उन्हें प्रत्यक्ष दर्शन देते हैं। यह प्रस्तुति भक्ति की शक्ति और भगवान के भक्तों के प्रति प्रेम को दर्शाती है।
अंतिम दृश्य में भगवान श्रीकृष्ण का नरसी मेहता के प्रति प्रेम दिखाया गया, जिसमें वे सांवलिया सेठ बनकर नरसी के 56 करोड़ का भात भरते हैं। यह दृश्य भक्त और भगवान के बीच के अद्वितीय संबंध को दर्शाता है, जिसमें भगवान स्वयं अपने भक्तों की मदद के लिए प्रकट होते हैं।
तीन दिवसीय श्रीकृष्ण पर्व ने न केवल दर्शकों को भक्ति रस में डुबो दिया, बल्कि भारत की महान सांस्कृतिक परंपराओं और लोककला का भी अद्वितीय परिचय दिया। जनजातीय संग्रहालय का यह आयोजन न केवल एक सांस्कृतिक उत्सव था, बल्कि भगवान श्रीकृष्ण के प्रति श्रद्धा और भक्ति का भी सजीव प्रदर्शन था, जिसने दर्शकों के मन-मस्तिष्क पर अमिट छाप छोड़ी।
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