भोपाल। मध्य प्रदेश जनजातीय संग्रहालय में रविवार 18 अगस्त को "संभावना" नामक सांस्कृतिक गतिविधि का आयोजन किया गया, जिसमें नृत्य, गायन और वादन की उत्कृष्ट प्रस्तुतियों से दर्शकों को मंत्रमुग्ध किया गया। इस कार्यक्रम में पुष्पेंद्र साहू एवं उनके साथियों द्वारा बुन्देली बधाई नृत्य और दादूलाल डांडोलिया एवं उनके साथियों द्वारा भारिया जनजातीय रमढोल नृत्य प्रस्तुत किया गया। यह आयोजन न केवल मध्य प्रदेश की बहुविध लोककला परंपराओं को जीवंत बनाए रखने का प्रयास है, बल्कि जनसामान्य को देश के विभिन्न राज्यों के कला रूपों से भी परिचित कराता है।
कार्यक्रम की शुरुआत दादूलाल डांडोलिया एवं उनके साथियों द्वारा भारिया जनजातीय रमढोल नृत्य से हुई। रमढोल नृत्य, जिसे भड़म नृत्य के नाम से भी जाना जाता है, भारिया जनजाति का एक प्रमुख नृत्य है, जो कई नामों से प्रचलित है। इसे गुन्नू साही, भड़नी, भड़नई, भरनोटी या भंगम नृत्य भी कहा जाता है। इस नृत्य का प्रमुख अवसर विवाह होता है और इसे समूह नृत्य के रूप में प्रस्तुत किया जाता है। नृत्य में भाग लेने वाले नर्तक और वादक आमतौर पर बीस से पचास-साठ पुरुष होते हैं, जो ढोल, टिमकी और झांझ जैसे वाद्ययंत्रों का उपयोग करते हैं।
टिमकी की संख्या ढोल से दोगुनी होती है और इन वाद्ययंत्रों की समवेत ध्वनि दूर गरजने वाले बादलों की तरह गंभीर और प्रभावशाली होती है। यह नृत्य, थोड़ा-थोड़ा विश्राम लेते हुए रातभर चलता है, जिससे यह न केवल शारीरिक बल्कि मानसिक रूप से भी बेहद ऊर्जावान अनुभव प्रदान करता है। रमढोल नृत्य, भारिया जनजाति के लोगों के जीवन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, जो उन्हें न केवल सांस्कृतिक रूप से एकजुट करता है, बल्कि उनके सामाजिक जीवन में भी रंग भरता है।
रमढोल नृत्य के बाद पुष्पेंद्र साहू एवं उनके साथियों ने बुन्देली बधाई नृत्य की प्रस्तुति दी। बुन्देली बधाई नृत्य, बुन्देलखण्ड अंचल की एक महत्वपूर्ण सांस्कृतिक धरोहर है, जो जन्म, विवाह और तीज-त्यौहारों के अवसर पर किया जाता है। विशेष रूप से जब मनौती पूरी हो जाती है, तो देवी-देवताओं के द्वार पर बधाई नृत्य प्रस्तुत किया जाता है।
इस नृत्य में स्त्रियां और पुरुष दोनों ही अत्यधिक उमंग और उल्लास के साथ भाग लेते हैं। बुज़ुर्ग महिलाएं, खासकर जब उनके परिवार में नए सदस्य का जन्म होता है, अपने वंश की वृद्धि के हर्ष से भरकर घर के आंगन में बधाई नाचने लगती हैं। इस अवसर पर वे नेग-न्यौछावर भी बांटती हैं।
मंच पर जब यह नृत्य समूह के रूप में प्रस्तुत किया जाता है, तो इसे और भी भव्य और जीवंत बनाने के लिए गीत गाए जाते हैं। बधाई नृत्य के नर्तक, अपने चेहरे की खुशी, पद संचालन, देह की लचक और रंगारंग वेशभूषा से दर्शकों का मन मोह लेते हैं। इस नृत्य में ढपला, टिमकी, रमतूला और बांसुरी जैसे वाद्ययंत्रों का प्रयोग होता है, जो नृत्य के सौंदर्य और जीवंतता को और भी बढ़ा देते हैं।
"संभावना" नामक यह गतिविधि, जो हर रविवार को मध्य प्रदेश जनजातीय संग्रहालय में आयोजित की जाती है, मध्य प्रदेश की पांच प्रमुख लोकांचलों और सात प्रमुख जनजातियों की बहुविध कला परंपराओं को जीवंत बनाए रखने का महत्वपूर्ण प्रयास है। यह आयोजन न केवल राज्य की सांस्कृतिक धरोहर को सहेजने का कार्य करता है, बल्कि जनसामान्य को देश के अन्य राज्यों के विविध कला रूपों से भी परिचित कराता है।
इस गतिविधि के माध्यम से, लोग न केवल लोककला और संस्कृति के विभिन्न आयामों को समझ सकते हैं, बल्कि उन्हें अपने जीवन में अपनाकर अपनी सांस्कृतिक धरोहर को सहेजने का संकल्प भी ले सकते हैं। यह आयोजन, जनजातीय संस्कृति और कला के प्रति जागरूकता बढ़ाने का एक महत्वपूर्ण मंच प्रदान करता है, जहां लोग अपने परिवार और दोस्तों के साथ आकर इस सांस्कृतिक धरोहर का आनंद ले सकते हैं।
लोककला और संस्कृति के प्रति जागरूकता
"संभावना" गतिविधि, मध्य प्रदेश जनजातीय संग्रहालय द्वारा की गई एक महत्वपूर्ण पहल है, जो न केवल राज्य की जनजातीय और लोककला को जीवंत बनाए रखने का प्रयास करती है, बल्कि लोगों को अपनी सांस्कृतिक जड़ों से जुड़ने का अवसर भी प्रदान करती है। इस तरह के आयोजन, सांस्कृतिक धरोहर को सहेजने और आगे की पीढ़ियों तक पहुंचाने के लिए अत्यंत आवश्यक हैं। रविवार का यह आयोजन, इस दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है, जो न केवल राज्य बल्कि देशभर में लोककला और संस्कृति के प्रति जागरूकता बढ़ाने का कार्य करेगा।
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