बैगा

बैगा नृत्य में दिखे लोक कलाओं के रंग, 32 मुखौटे लगाकर कलाकारों ने किया अभिनय

भारत भवन में 42वें वर्षगांठ समारोह के दौरान नाटक ‘आदि विक्रमादित्य’ का मंचन

भोपाल। बहुकला केन्द्र भारत भवन का आंगन शनिवार शाम प्रदेश के बैगा जनजातीय कलाकारों की आकर्षक प्रस्तुति का साक्षी बना। मौका था भारत भवन के 42वें वर्षगांठ समारोह के पांचवे दिन आयोजित सांस्कृतिक प्रस्तुतियों का। समारोह की शुरुआत प्रदेश के डिंडौरी जिले के बैगा जनजातीय कलाकार पद्श्री अर्जुन सिंह धुर्वे एवं समूह के कलाकारों द्वारा दी गई जनजातीय नृत्य की प्रस्तुति से हुई। लगभग 40 मिनट की लोक कला और रंग-बिरंगे वेशभूषा से सजी इस प्रस्तुति में कलाकारों ने अपने पारंपरिक भाषा में तैयार गीतों के माध्यम से खूबसूरत प्रस्तुति दी। इसके बाद कला प्रेमियों को अंतरंग सभागार में खेले जा रहे नाटक आदि विक्रमादित्य को देखने का अवसर मिला। इस दौरान कलाकारों ने 32 मुखौटों का कोलाज और 12 फीट के पुतलों के माध्यम से सिंहासन बत्तीसी की कहानी दिखाई। यह नाटक वर्तमान समाजिक परिदृश्य में इतिहास को देखने की एक नई दृष्टि को प्रदर्शित करता है। टीकम जोशी द्वारा निर्देशित इस नाटक की प्रस्तुति मध्यप्रदेश नाट्य विद्यालय के छात्रों ने दी।


करमा नृत्य से हुआ प्रस्तुति का आगाज

बैगा जनजाति कलाओं पर आधारित नृत्य प्रस्तुति की शुरुआत श्री अर्जुन सिंह धुर्वे एवं साथी कलाकारों ने करमा नृत्य के साथ किया। करमा नृत्य की प्रस्तुति ने सबका मन मोह लिया। कृषि कर्म प्रधान नृत्य करमा फसल कटाई और कृषि पर आधारित है। यह बैगा जनजाति का लोकप्रिय नृत्य है। मांदर की थाप पर, सिर में रंगीन पगड़ी और मोरपंख से सुसज्जित, लाल व काला परिधान से उत्साह के साथ कलाकारों ने इसे प्रस्तुत किया। गहरी नीली साड़ी पहने महिलाएं और सिर में कलगी लगाए आदिवासी परम्परा की पहचान को सरंक्षित कर सामूहिक, सामजंस्य और एकता का संदेश देती इस प्रस्तुति को खूब पसंद किया। वाद्य यंत्रों में भी परंपरा की झलक देखने को मिली। कलाकारों ने निशान बाजा, मोहरी, मांदर, टीमटिमी बाजा का प्रयोग करते हुए कर्णप्रिय संगीत के साथ सुंदर प्रस्तुति थी। जनजातीय कलाकार श्री अर्जुन सिंह ने बताया कि इस नृत्य को भादों माह की एकादशी की उपवास करके करम वृक्ष की शाखा को आंगन या चौगान में रोपित किया जाता है। दूसरे दिन नये अन्न को अपने कुल देवता को अर्पित करने के बाद नवामनका उपयोग प्रारंभ किया जाता है। प्रस्तुति के अगले क्रम में कलाकारों ने परघौनी नृत्य की प्रस्तुति दी। बैगा जनजातीयों में परघौनी नृत्य विवाह के अवसर पर बारात की अगवानी के समय किया जाता है। इसमें लड़के वालों की ओर से आंगन में हाथी बनाकर नचाया जाता है।


विक्रमादित्य से लेकर राजा भोज के समय का आदर्श

नाटक आदि विक्रमादित्य वर्तमान समाजिक परिदृश्य में इतिहास को देखने की एक नई दृष्टि पैदा करता है। यह नाटक सिंहासन बत्तीसी और बेताल पच्चीसी की कहानियों का संकलन है। नाटक आमतौर पर कहानी सुनाने वाली बत्तीस पुतलियों पर केन्द्रित है। कहानी को प्रभावशाली ढंग से चित्रित करने के लिए निर्देशक ने अनेक उपकरणों का प्रयोग किया है। नाटक की कहानी राजा भोज द्वारा सिंहासन के प्रकटीकरण से शुरू होती है और कथा इसे राजा विक्रमादित्य और बेताल की रहस्यमयी दुनिया की ओर ले जाती है। अंत में, सिंहासन को वापस जगह पर रख दिया जाता है क्योंकि विक्रमादित्य की मृत्यु से जो शून्य पैदा हुआ, उसे कभी भी शक्तिशाली और योग्य राजा भोज द्वारा नहीं भरा जा सकता है।

पहली बार देखा बैगा नृत्य

बैगा नृत्य की प्रस्तुति बहुत शानदार थी। पहली बार बैगा नृत्य देखा। बैगा जनजातीय कलाकारों ने 40 मिनट की प्रस्तुति में उनकी पारंपरिक भाषा सुनने को मिली। उनके रंग-बिरंगे वेशभूषा बहुत अच्छे लगे।

-रजत शुक्ला, दर्शक

नाटक देखकर बचपन की यादें हुईं ताजा 

बचपन में दादा-दादी राजा महाराजाओं की कहानियां सुनाती थीं। आज पहली बार राजा महाराजा की कहानी का नाटक देखकर बचपन की यादें ताजा हो गई। नाटक की कहानी बहुत अच्छी थी। कलाकारों ने मुखौटे लगाकर अच्छे से अभिनय किया।

-पुष्कर शर्मा, दर्शक

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