डांग

डांग की मौखिक लोककथा "कणसरि": एक अनूठी नाट्य प्रस्तुति की गाथा

"कणसरि" नाटक के माध्यम से अनाज की देवी की कहानी और महिला सशक्तिकरण के संदेश को दर्शाने वाली विशेष रिपोर्ट। भोपाल में त्रिवेणी वड़ोदरा के कलाकारों द्वारा मंचित, इस नाटक ने दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया।

भोपाल का शहीद भवन, जो कला और संस्कृति का एक महत्वपूर्ण केंद्र है, राष्ट्रीय जनयोद्धा नाट्य समारोह की छठी शाम को एक अद्वितीय और यादगार नाट्य प्रस्तुति का साक्षी बना। "कणसरि" नामक नाटक, जिसे वड़ोदरा के प्रतिष्ठित कला संस्थान त्रिवेणी के कलाकारों ने मंचित किया, ने डांग की एक प्राचीन मौखिक लोककथा को नए सिरे से जीवंत कर दिया।

प्रस्तावना
इस नाटक का निर्देशन पी.एस. चारि ने किया, जो एक अनुभवी थियेटर शिक्षक और निर्देशक हैं। चारि ने गुजराती, हिंदी, अंग्रेजी, और मराठी में अनेक नाटकों का सफल निर्देशन किया है और उनका कार्य थियेटर के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान देता है।

नाटक की कथा

"कणसरि" नाटक कुंकणा समुदाय की देवी कणसरि की कहानी पर आधारित है, जिन्हें अनाज की देवी के रूप में पूजा जाता है। इस कहानी में अनाज के एक कण और उसकी कटाई की यात्रा के माध्यम से एक गहरा संदेश दिया गया है, जो अन्याय और दुर्व्यवहार के खिलाफ एक महिला की दृढ़ता और हिम्मत को दर्शाता है। कणसरि का किरदार, जो अलौकिक शक्तियों से संपन्न है, प्रकृति से गहरा प्रेम करती है और उसके पास मिट्टी, रेत, और पत्थरों को स्वादिष्ट पारंपरिक व्यंजनों में बदलने की जादुई शक्ति है।


नाटक का महत्व

इस नाटक की प्रस्तुति ने न केवल डांग की लोककथा को जीवंत किया बल्कि आधुनिक समाज में महिला सशक्तिकरण के महत्व को भी उजागर किया। नाटक में प्रस्तुत किए गए विषय और संदेश आज के समय में भी उतने ही प्रासंगिक हैं जितने कि पहले थे।

कलाकारों की भूमिका

त्रिवेणी के 35 से अधिक कलाकारों ने इस नाटक में भाग लिया और उनके अभिनय ने नाटक के प्रत्येक दृश्य को जीवंत कर दिया। पूजा पुरोहित ने कणसरि के किरदार में, दूर्वा लखलानी ने बाल कणसरि के रूप में, और कल्पना कापडिया ने जलदेवी की भूमिका में अपनी अद्वितीय प्रतिभा का प्रदर्शन किया। इन कलाकारों के साथ-साथ, रेशम, रूपा, झेलम, यशस्वी, नीरजा, इशिता, निकुंज, नील, जैनेश, नेहा, देवेन, सौरभ, कृष्णा, वैभव सहित अन्य कलाकारों ने भी अपने अभिनय से नाटक की सफलता में योगदान दिया।



संगीत और नृत्य

संगीत मिशाल भाटिया और मानसी देसाई के द्वारा संयोजित किया गया था, जिनके संगीत ने नाटक के भावों को और अधिक गहराई से प्रस्तुत किया। नृत्य निर्देशन तोसीफ गोधावाला ने किया, जिनकी कोरियोग्राफी ने नाटक के विभिन्न दृश्यों में जीवंतता और ऊर्जा का संचार किया।

मुखौटा डिजाइऔर मंच सज्जा

उम्बरो समूह, पृथ्वीराज, उर्मिश, चिन्मय, ईशा, नुपुर, हेतवी, वेदी, कुमकुम, ऋत्विक ने मुखौटा डिजाइन और मंच परिकल्पना में अपनी सृजनात्मकता का परिचय दिया। इनके डिजाइन ने नाटक को एक अद्वितीय और आकर्षक रूप प्रदान किया, जिसने दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया।

समापन

"कणसरि" की यह नाट्य प्रस्तुति न केवल एक मनोरंजक और शिक्षाप्रद अनुभव थी बल्कि यह हमें यह भी याद दिलाती है कि कैसे पारंपरिक कथाएँ और लोककला हमारी सांस्कृतिक धरोहर के महत्वपूर्ण अंग हैं। इस प्रस्तुति ने नाटक और कला के माध्यम से समाजिक संदेशों को प्रसारित करने की अपार क्षमता को भी उजागर किया। ऐसी प्रस्तुतियाँ हमें प्रेरित करती हैं कि हम अपनी सांस्कृतिक विरासत को संजोए रखें और इसे आने वाली पीढ़ियों तक पहुँचाएं।

India News Vista
88

Newsletter

Subscribe to our newsletter for daily updates and stay informed

Feel free to opt out anytime
Get In Touch

+91 99816 65113

[email protected]

Follow Us

© indianewsvista.in. All Rights Reserved.