भोपाल

भोपाल गैस पीड़ितों की मांग, प्रधानमंत्री को भेजे गए पोस्ट कार्ड्स में न्याय की गुहार

गैस पीड़ित निराश्रित पेंशन भोगी संघर्ष मोर्चा के अध्यक्ष बालकृष्ण नामदेव और गैस पीड़ित महिला एवं पुरुष संघर्ष मोर्चा की अध्यक्ष नसरीन खान के नेतृत्व में गैस पीड़ितों ने प्रधानमंत्री के नाम लिखा पत्र

भोपाल। भोपाल गैस त्रासदी, जिसे विश्व की सबसे भीषण औद्योगिक दुर्घटनाओं में से एक माना जाता है, का दर्द आज भी उन हजारों पीड़ितों के जीवन में जीवंत है, जिन्होंने इस हादसे में अपने परिवार, स्वास्थ्य और जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा खो दिया। इस त्रासदी के पीड़ितों की समस्याओं और मांगों को लेकर एक नई मुहिम छिड़ी है, जिसमें गैस पीड़ित संगठन प्रधानमंत्री के नाम पोस्ट कार्ड के माध्यम से अपनी आवाज बुलंद कर रहे हैं। यह अभियान पिछले तीन दिनों से जोर-शोर से चल रहा है और इसमें बड़ी संख्या में गैस पीड़ित महिलाएं और पुरुष शामिल हो रहे हैं।

गैस पीड़ित महिलाओं की एकजुटता

रविवार का दिन इस मुहिम के लिए एक महत्वपूर्ण दिन साबित हुआ, जब बड़ी संख्या में गैस पीड़ित महिलाएं करोंद कला गोया कॉलोनी में एकत्रित हुईं। इन महिलाओं ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पोस्ट कार्ड भेजे, जिसमें उन्होंने अपनी व्यथा और मुआवजे की मांग को स्पष्ट रूप से रखा। महिलाओं की इस एकजुटता ने एक बार फिर यह साबित कर दिया कि आज भी इन पीड़ितों का दर्द न केवल जीवित है, बल्कि उनके हक की लड़ाई में उनकी आवाज और भी बुलंद हो गई है।

पोस्ट कार्ड में सबसे प्रमुख मांग यह थी कि जिन गैस पीड़ितों को अब तक मात्र 25 हजार रुपये का मुआवजा मिला है, उन्हें भारत सरकार की ओर से कम से कम 5 लाख रुपये का मुआवजा शीघ्र प्रदान किया जाए। यह मांग न केवल आर्थिक सहायता की गुहार है, बल्कि उन लाखों लोगों की मानसिक और शारीरिक पीड़ा का मुआवजा भी है, जो इस त्रासदी के बाद से अपने जीवन को पटरी पर लाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं।

संगठनों का समर्थन: नेतृत्व और उद्देश्य

इस मुहिम का नेतृत्व गैस पीड़ित निराश्रित पेंशन भोगी संघर्ष मोर्चा के अध्यक्ष बालकृष्ण नामदेव और गैस पीड़ित महिला एवं पुरुष संघर्ष मोर्चा की अध्यक्ष नसरीन खान ने किया। बालकृष्ण नामदेव ने सभा को संबोधित करते हुए कहा यह समय की मांग है कि सरकार गैस पीड़ितों के लिए ठोस कदम उठाए। यह पोस्ट कार्ड अभियान उन हजारों पीड़ितों की आवाज है, जिन्हें अब तक न्याय नहीं मिला।

नसरीन खान ने भी सभा में उपस्थित लोगों को संबोधित करते हुए कहा महिलाओं की यह एकजुटता और उनकी आवाज को अनसुना नहीं किया जा सकता। यह मुहिम तभी सफल होगी, जब सरकार हमारी मांगों पर गौर करेगी और उन्हें पूरा करेगी।


सभा में रीना, नवाब और अन्य संगठनों के नेताओं ने भी अपने विचार व्यक्त किए। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि यह संघर्ष केवल मुआवजे की मांग के लिए नहीं, बल्कि न्याय और सम्मान की लड़ाई है। उन्होंने इस बात का भी जिक्र किया कि यह मुहिम तब तक चलती रहेगी, जब तक सरकार उनकी मांगों को मान नहीं लेती।

आज भी पीड़ितों के जीवन पर गहरा असर

भोपाल गैस त्रासदी ने हजारों लोगों के जीवन को तबाह कर दिया था। उस काली रात का भयावह दृश्य आज भी पीड़ितों की आंखों के सामने ताजा है। इसके बावजूद, आज तक कई पीड़ितों को उचित मुआवजा नहीं मिला है। इस त्रासदी के बाद कई परिवारों ने अपने प्रियजनों को खो दिया और जो बच गए, वे आज भी शारीरिक और मानसिक बीमारियों से जूझ रहे हैं।

यह मुहिम उन सभी पीड़ितों की आवाज है, जो अपने हक के लिए लड़ रहे हैं। यह सिर्फ एक आर्थिक मदद की मांग नहीं है, बल्कि उन लोगों के लिए सम्मान और न्याय की लड़ाई है, जिन्होंने इस त्रासदी में सब कुछ खो दिया। 25 हजार रुपये का मुआवजा, जो उन्हें अब तक दिया गया है, उनकी जरूरतों और पीड़ा के सामने बहुत कम है। इसलिए, 5 लाख रुपये का मुआवजा मांगना न केवल उचित है, बल्कि उनका हक भी है।

आगे की राह: न्याय की उम्मीद

इस मुहिम के तहत प्रधानमंत्री को भेजे गए पोस्ट कार्ड्स एक प्रतीकात्मक कदम हैं, लेकिन इनका महत्व बहुत बड़ा है। यह कदम दिखाता है कि पीड़ितों ने हार नहीं मानी है और वे अभी भी अपने अधिकारों के लिए लड़ रहे हैं। इस मुहिम का मुख्य उद्देश्य सरकार को उनकी जिम्मेदारियों का एहसास दिलाना और उन्हें गैस पीड़ितों के प्रति उनकी जिम्मेदारियों को निभाने के लिए मजबूर करना है।

भोपाल गैस त्रासदी के पीड़ितों की इस मांग को पूरा करना सरकार का कर्तव्य है। यह न केवल उनके जीवन की गुणवत्ता में सुधार लाएगा, बल्कि उन्हें यह विश्वास भी दिलाएगा कि देश की सरकार उनके साथ खड़ी है। इस मुहिम का प्रभाव केवल तभी दिखेगा जब सरकार इस पर सकारात्मक कदम उठाएगी और पीड़ितों को उचित मुआवजा प्रदान करेगी।

यह पोस्ट कार्ड अभियान इस बात का प्रतीक है कि जब तक गैस पीड़ितों को न्याय नहीं मिलेगा, तब तक उनकी आवाज उठती रहेगी। यह उनकी न्याय की लड़ाई है और इस लड़ाई में वे अकेले नहीं हैं। पूरा देश उनके साथ है और सरकार को इस आवाज को सुनना ही होगा। इस मुहिम ने यह साबित कर दिया है कि पीड़ितों की आवाज को अनसुना नहीं किया जा सकता और यह लड़ाई तब तक चलेगी जब तक न्याय नहीं मिलता।ं

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