भोपाल। वन विहार राष्ट्रीय उद्यान में अंतरराष्ट्रीय गिद्ध दिवस के अवसर पर एक दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया, जिसमें गिद्ध संरक्षण और संवर्धन को लेकर महत्वपूर्ण चर्चा और जानकारियां साझा की गईं। इस आयोजन का उद्देश्य गिद्धों के अस्तित्व को बचाने और उनके महत्व को उजागर करना था, जो पर्यावरण संतुलन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इस अवसर पर शहर के विभिन्न क्षेत्रों से गौशालाओं के संचालक, प्रबंधक और अन्य स्वंयसेवी संस्थाओं के प्रतिनिधि मौजूद रहे।
कार्यशाला की शुरुआत वन विहार के संचालक, मीना अवधेशकुमार शिवकुमार द्वारा की गई, जिन्होंने गिद्धों के संरक्षण के महत्व पर प्रकाश डाला। गिद्ध, पर्यावरण के महत्वपूर्ण अंग होने के बावजूद, पिछले कुछ दशकों में तेजी से विलुप्त होने की कगार पर पहुंच गए हैं। भारत में गिद्धों की संख्या में भारी गिरावट के कारण सरकार और पर्यावरण संरक्षण संस्थाओं द्वारा लगातार जागरूकता अभियान चलाए जा रहे हैं। इन पक्षियों का प्रमुख कार्य मृत जानवरों को खाकर पर्यावरण को स्वच्छ रखना है। यदि गिद्ध विलुप्त हो जाते हैं, तो मृत पशुओं के सड़ने से संक्रामक बीमारियों का खतरा बढ़ जाएगा, जिससे मानव जीवन पर भी गंभीर प्रभाव पड़ सकता है।
कार्यशाला में गौशाला संचालकों और अन्य सहभागियों को जानकारी दी गई कि दुधारू पशुओं के इलाज में डायक्लोफेनिक दवा का उपयोग गिद्धों के लिए घातक सिद्ध हो रहा है। डायक्लोफेनिक एक ऐसी दवा है जिसका उपयोग पशुओं में दर्द और सूजन के उपचार के लिए किया जाता है, लेकिन जब गिद्ध इन पशुओं के मृत शरीर को खाते हैं, तो यह दवा उनके लिए विषैली साबित होती है, जिससे उनकी मृत्यु हो जाती है।
इस विषय पर विस्तार से जानकारी देने के लिए कई विषय विशेषज्ञों ने कार्यशाला में अपने विचार साझा किए। भोपाल बर्ड्स के मो. खालीक ने गिद्धों की विभिन्न प्रजातियों और उनके पर्यावरणीय महत्व पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि गिद्ध केवल पर्यावरण को साफ रखने में मदद नहीं करते, बल्कि बीमारियों के प्रसार को रोकने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
गिद्ध संरक्षण केंद्र केरवा की बायोलॉजिस्ट जैनब खान ने गिद्धों के संरक्षण में केंद्र की भूमिका पर जानकारी दी। उन्होंने बताया कि किस प्रकार से गिद्ध संरक्षण केंद्र में इन पक्षियों की देखभाल की जाती है और उन्हें पुनर्वासित किया जाता है। उनके मुताबिक, गिद्धों की संख्या बढ़ाने के लिए वैज्ञानिक प्रयासों के साथ-साथ सामुदायिक सहभागिता भी अत्यंत आवश्यक है।
डॉ. अजय रामटेके, उप संचालक, पशु चिकित्सालय ने एक प्रस्तुति के माध्यम से गौ संचालकों को बताया कि डायक्लोफेनिक के स्थान पर मैलेक्जिकेम दवा का उपयोग किया जाना चाहिए। यह दवा गिद्धों के लिए सुरक्षित है और इससे उन्हें कोई नुकसान नहीं पहुंचता। डायक्लोफेनिक के उपयोग पर भारत सरकार द्वारा प्रतिबंध लगा दिया गया है, लेकिन जागरूकता की कमी के कारण इसका उपयोग अब भी कई जगहों पर किया जा रहा है, जिसे रोकने के लिए ऐसे जागरूकता अभियानों की आवश्यकता है।
गिद्ध संरक्षण पर जागरूकता बढ़ाने के प्रयास में, कार्यशाला के साथ-साथ वन विहार राष्ट्रीय उद्यान में स्कूल के बच्चों के लिए भी कई कार्यक्रम आयोजित किए गए। गिद्ध थीम पर एक ड्रॉइंग प्रतियोगिता आयोजित की गई, जिसमें कई छात्रों ने भाग लिया। इस प्रतियोगिता का आयोजन गिद्ध संवर्धन केंद्र, केरवा के प्रबंधक श्री सेमसंग द्वारा किया गया। विजेताओं को वन विहार के संचालक द्वारा पुरस्कृत किया गया, जिससे बच्चों में गिद्धों के प्रति जागरूकता और रुचि उत्पन्न हुई।
प्रतियोगिता के बाद बच्चों को सांप-सीढ़ी खेल के माध्यम से गिद्ध संरक्षण के बारे में जानकारी दी गई। यह खेल बच्चों के लिए न केवल मनोरंजक था, बल्कि इसके माध्यम से उन्हें गिद्धों के महत्व और संरक्षण के बारे में सरल तरीके से जानकारी भी मिली।
अंतरराष्ट्रीय गिद्ध दिवस के उपलक्ष्य में वन विहार में विभिन्न जन जागरूकता कार्यक्रम भी आयोजित किए गए। पर्यटकों को गिद्धों के संरक्षण के महत्व के बारे में जानकारी देने के लिए 'ऑन द स्पॉट क्विज' का आयोजन किया गया। इस क्विज में गिद्धों के जीवन चक्र, उनके प्राकृतिक आवास और उनके संरक्षण से जुड़े प्रश्न पूछे गए। पर्यटकों ने इस क्विज में उत्साहपूर्वक भाग लिया, और सही उत्तर देने वालों को पुरस्कार भी प्रदान किए गए।
इस अभियान का मुख्य उद्देश्य पर्यटकों में गिद्धों के प्रति लगाव उत्पन्न करना और उनके संरक्षण की आवश्यकता को समझाना था। वन विहार में आने वाले पर्यटक इस कार्यक्रम से बहुत प्रभावित हुए और उन्होंने गिद्ध संरक्षण के प्रति अपनी जिम्मेदारी को समझा।
गिद्ध संरक्षण को लेकर आयोजित इस कार्यशाला और जागरूकता कार्यक्रम ने एक महत्वपूर्ण संदेश दिया है कि गिद्धों के संरक्षण के बिना पर्यावरण संतुलन को बनाए रखना कठिन हो जाएगा। सरकार और समाज दोनों को मिलकर इस दिशा में ठोस कदम उठाने होंगे।
गौशालाओं के संचालकों के लिए यह आवश्यक है कि वे डायक्लोफेनिक जैसी हानिकारक दवाओं के उपयोग से बचें और उनके स्थान पर सुरक्षित दवाओं का प्रयोग करें। इसके अलावा पशुपालकों और किसानों को भी इस दिशा में जागरूक करने की आवश्यकता है।
गिद्धों के संरक्षण के लिए वैज्ञानिक प्रयासों के साथ-साथ सामुदायिक सहभागिता भी महत्वपूर्ण है। ऐसे कार्यक्रमों के माध्यम से लोगों में जागरूकता बढ़ाना और उन्हें गिद्धों के संरक्षण में भागीदार बनाना ही इसका सही समाधान है।
वन विहार राष्ट्रीय उद्यान का यह प्रयास सराहनीय है और उम्मीद की जाती है कि भविष्य में इस प्रकार के और भी कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे, जिससे गिद्धों की घटती संख्या को रोकने में मदद मिलेगी।
अंतरराष्ट्रीय गिद्ध दिवस न केवल गिद्धों के संरक्षण की आवश्यकता को रेखांकित करता है, बल्कि यह हमें यह भी सिखाता है कि पर्यावरण के संरक्षण में हर जीव का अपना महत्व है, और हमें सभी जीवों के प्रति अपनी जिम्मेदारी समझनी होगी।
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