भोपाल। जनजातीय लोक कला एवं बोली विकास अकादमी और सोसायटी फॉर एंडेंजर्ड एंड लेसर नोन लैंग्वेज, लखनऊ के सहयोग से मध्य प्रदेश जनजातीय संग्रहालय में 1 से 4 अगस्त तक एक महत्वपूर्ण शिविर का आयोजन किया गया। इस शिविर का उद्देश्य घुमंतू समुदायों की भाषाओं का शब्द संचय करना और उनकी संरक्षण की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाना था। इस शिविर में मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात, दिल्ली और अन्य स्थानों के अध्येता और शोधार्थियों ने भागीदारी की। मध्य प्रदेश जनजातीय संग्रहालय में आयोजित इस शिविर ने न केवल घुमंतू समुदायों की भाषाओं को संरक्षित करने की दिशा में महत्वपूर्ण कार्य किया जा रहा है, बल्कि इन समुदायों के बीच एकजुटता और सहयोग की भावना को भी बढ़ावा दिया। इस शिविर की सफलता से प्रेरित होकर, भविष्य में और भी ऐसे शिविरों का आयोजन किया जाएगा, जिससे अन्य समुदायों की भाषाओं को भी संरक्षित किया जा सकेगा। इस शिविर ने यह साबित कर दिया कि भाषा केवल संवाद का माध्यम नहीं है, बल्कि यह हमारी संस्कृति, परंपरा, और ज्ञान का भंडार भी है। इन घुमन्तू समुदायों की भाषाओं का संरक्षण केवल उनके लिए ही नहीं, बल्कि समस्त मानवता के लिए महत्वपूर्ण है। इस प्रकार के प्रयासों से हम अपनी विविधता को संरक्षित कर सकते हैं और अपने भविष्य को समृद्ध बना सकते हैं।
शिविर का शुभारंभ
शिविर का शुभारंभ दीप प्रज्ज्वलन और अतिथियों के स्वागत से हुआ। मंच पर अकादमी निदेशक डॉ. धर्मेंद्र पारे, सोसायटी फॉर एंडेंजर्ड एंड लेसर नोन लैंग्वेज की डायरेक्टर प्रो. कविता रस्तोगी, बेडिया समुदाय की श्याम बाई, पारधी समुदाय के सुंदर लाल, गाड़िया लोहार समुदाय के गौरे लाल, कुचबंदिया समुदाय के किशन कुचबंधिया और बंजारा समुदाय के गोपी उपस्थित थे।
शिविर का उद्देश्य और महत्त्व
डॉ. धर्मेंद्र पारे ने बताया कि इस शिविर का मुख्य उद्देश्य बेड़िया, पारधी, कुचबंदिया, गाड़िया लोहार और बंजारा समुदायों की अलिखित और मौखिक भाषाओं में उपयोग किए जाने वाले शब्दों का संचय करना है। इस प्रयास से एक टॉकिंग डिक्शनरी तैयार की जाएगी, जो इन समुदायों की भाषाओं को संरक्षित करने में मददगार होगी। उन्होंने यह भी बताया कि मध्य प्रदेश में 51 घुमंतू समुदाय हैं, जिनमें से 5 समुदायों को इस शिविर में आमंत्रित किया गया है।
प्रो. कविता रस्तोगी का भाषण
प्रो. कविता रस्तोगी ने अपने भाषण में बताया कि भारत एक बहुभाषी देश है और भाषा के माध्यम से हमारी परंपराएं, ज्ञान, प्राचीन इतिहास और रीति-रिवाज नई पीढ़ी तक पहुंचते हैं। आज की पीढ़ी अपनी भाषा बोलना छोड़ रही है, जिससे हमारी परंपराएं और ज्ञान लुप्त होते जा रहे हैं। इस शिविर के माध्यम से इन समुदायों की भाषाओं के शब्दों का संचय कर उन्हें संरक्षित करने का प्रयास किया जा रहा है।
शब्द संचय की प्रक्रिया
शिविर में वैज्ञानिक पद्धति से प्रतिभागियों को प्रशिक्षित किया गया ताकि वे भाषा के शब्दों का सही तरीके से संचय कर सकें। इस प्रक्रिया में शब्दों के डेटा को रिकॉर्ड कर त्रिभाषी कोष तैयार किया जाएगा। यह एक महत्वपूर्ण कदम है, जिससे इन समुदायों की भाषाओं को संरक्षित और भविष्य की पीढ़ियों के लिए उपलब्ध कराया जा सकेगा।
महत्वपूर्ण अतिथियों की उपस्थिति
शिविर में बेडिया समुदाय की श्याम बाई, पारधी समुदाय के सुंदर लाल, गाड़िया लोहार समुदाय के गौरे लाल, कुचबंदिया समुदाय के किशन कुचबंधिया और बंजारा समुदाय के गोपी ने भी भाग लिया। इन अतिथियों ने अपनी-अपनी भाषाओं के शब्दों के संचय में महत्वपूर्ण योगदान दिया और इस प्रयास को सफल बनाने में अपनी भूमिका निभाई।
शिविर के दौरान गतिविधियां
शिविर के दौरान विभिन्न गतिविधियों का आयोजन किया गया, जिसमें प्रतिभागियों ने अपने-अपने समुदाय की भाषाओं के शब्दों का संचय किया। इस दौरान, प्रतिभागियों को भाषा विदों द्वारा प्रशिक्षित किया गया और वैज्ञानिक पद्धति से परिचित कराया गया। यह सुनिश्चित किया गया कि शब्द संचय की प्रक्रिया वैज्ञानिक और व्यवस्थित हो।
शिविर की सफलता और भविष्य की दिशा
इस शिविर का आयोजन देश में पहली बार इस प्रकार किया गया, जिसमें घुमंतू समुदायों की अलिखित और मौखिक शब्दों का संचय किया गया। यह एक महत्वपूर्ण पहल है, जो इन समुदायों की भाषाओं को संरक्षित करने और उन्हें पहचान दिलाने की दिशा में उठाया गया एक महत्वपूर्ण कदम है।
Subscribe to our newsletter for daily updates and stay informed
© indianewsvista.in. All Rights Reserved.