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कच्चे बांस और माहुल बेल की पत्तियों से बनी 'खुमरी' में ग्रामीण जीवन की झलक

इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मानव संग्रहालय में 'खुमरी' प्रदर्शनी का उद्घाटन, पारंपरिक छतरी का संरक्षण और महत्व

भोपाल। इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मानव संग्रहालय के अंतरंग प्रदर्शनी भवन वीथी संकुल में अगस्त माह के प्रादर्श 'खुमरी' का उद्घाटन किया गया। इस अवसर पर मध्य प्रदेश शासन के स्कूल शिक्षा विभाग के सचिव डॉ. संजय गोयल ने मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित होकर प्रदर्शनी का उद्घाटन किया। उनके साथ रवीन्द्र सिंह अपर संचालक लोक शिक्षण, गणमान्य नागरिक, संग्रहालय के निदेशक डॉ. अमिताभ पाण्डेय एवं अन्य अधिकारी एवं कर्मचारी भी उपस्थित रहे। 


उद्घाटन समारोह

उद्घाटन समारोह की शुरुआत संग्रहालय के निदेशक, डॉ. अमिताभ पाण्डेय द्वारा डॉ. संजय गोयल को संग्रहालय का प्रतीक चिन्ह भेंट कर की गई। डॉ. पाण्डेय ने अपने स्वागत भाषण में इस प्रदर्शनी के महत्व और उद्देश्य पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा, खुमरी एक पारंपरिक छतरी है जो हमारे पूर्वजों के अद्वितीय देशज ज्ञान और पर्यावरणीय अनुकूलता का प्रतीक है। इस प्रकार की प्रदर्शनी न केवल हमारी सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित करती है बल्कि नई पीढ़ी को इसके महत्व से भी अवगत कराती है।

खुमरी: एक पारंपरिक छतरी का परिचय

संग्रहालय सहायक, डॉ. उमेश झारिया ने प्रदर्शनी में प्रदर्शित प्रादर्श 'खुमरी' के बारे में दर्शकों को विस्तृत जानकारी दी। उन्होंने बताया कि खुमरी का उपयोग मुख्यतः बारिश और धूप से बचाव के लिए किया जाता है। यह छतरी प्राकृतिक पर्यावरण में मिलने वाले स्थानीय बांस और माहुल बेल (बहुनिया वहलाई) की पत्तियों से बनाई जाती है। खुमरी मध्य प्रदेश के आदिवासी क्षेत्रों में मुख्यतः कृषक समुदाय द्वारा उपयोग की जाती थी। हालांकि, आधुनिक छाते और पॉलिथीन की उपलब्धता के कारण इसका प्रचलन धीरे-धीरे कम हो गया है। 

खुमरी का निर्माण

डॉ. झारिया ने खुमरी के निर्माण प्रक्रिया के बारे में भी बताया। उन्होंने कहा, खुमरी का निर्माण स्थानीय कच्चे बांस और माहुल बेल की पत्तियों से किया जाता है। सबसे पहले बांस की पतली पट्टियों को तैयार किया जाता है और फिर उन्हें गुथकर एक छतरी का रूप दिया जाता है। इसके बाद सूखी माहुल पत्तियों को व्यवस्थित रूप से छाजन करके खुमरी बनाई जाती है। यह पारंपरिक छतरी बेहद हल्की और सुंदर होती है।

खुमरी का सांस्कृतिक महत्व

प्रदर्शनी में खुमरी के सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्व पर भी प्रकाश डाला गया। खुमरी का निर्माण पारंपरिक रूप से गांव के बुजुर्गों द्वारा किया जाता है और इसका उपयोग बारिश और धूप से बचाव के लिए किया जाता है। खुमरी का उपयोग मुख्यतः कृषक समुदाय द्वारा खेतों में काम करते समय और स्थानीय साप्ताहिक बाजार जाते समय किया जाता था। भारत के विभिन्न प्रांतों में खुमरी को विभिन्न नामों से जाना जाता है, जैसे छत्तीसगढ़ में मोरा, उत्तर-पूर्वी राज्यों में नुप और आंध्रप्रदेश में गोदुगु।

संरक्षण और संवर्धन का प्रयास

इस प्रदर्शनी का उद्देश्य न केवल खुमरी जैसी पारंपरिक वस्तुओं को संरक्षित करना है बल्कि इन्हें नई पीढ़ी के समक्ष प्रस्तुत करना भी है। डॉ. संजय गोयल ने इस अवसर पर कहा ऐसी प्रदर्शनी हमारी सांस्कृतिक धरोहर को जीवित रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। हमें अपने पारंपरिक ज्ञान और वस्तुओं को संरक्षित करने की आवश्यकता है ताकि हमारी आने वाली पीढ़ियां भी इनसे परिचित हो सकें।

प्रदर्शनी की विशेषताएं

प्रदर्शनी में खुमरी के विभिन्न प्रकारों और उनके उपयोगों को दर्शाया गया है। इसमें खुमरी के निर्माण प्रक्रिया को भी दर्शाया गया है ताकि दर्शक इसे निकट से समझ सकें। प्रदर्शनी में खुमरी के साथ-साथ अन्य पारंपरिक वस्त्र और उपकरण भी प्रदर्शित किए गए हैं जो दर्शकों को आदिवासी और ग्रामीण जीवन की झलक प्रदान करते हैं।


संग्रहालय के निदेशक, डॉ. अमिताभ पाण्डेय ने कहा हमारा उद्देश्य है कि हम अपने संग्रहालय के माध्यम से हमारी सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित और संवर्धित करें। हम भविष्य में और भी पारंपरिक वस्त्र और उपकरणों की प्रदर्शनी आयोजित करेंगे ताकि हमारे दर्शक इनसे परिचित हो सकें। 

अगस्त माह के प्रादर्श 'खुमरी' का यह उद्घाटन समारोह संग्रहालय के लिए एक महत्वपूर्ण अवसर साबित हुआ। इस प्रदर्शनी ने न केवल खुमरी जैसी पारंपरिक वस्तु के महत्व को उजागर किया बल्कि दर्शकों को भी इसके सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्व से अवगत कराया। यह प्रदर्शनी संग्रहालय के संरक्षण और संवर्धन के प्रयासों का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है और उम्मीद है कि यह दर्शकों को पारंपरिक ज्ञान और वस्तुओं के महत्व से परिचित कराएगी। 

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