प्रोफेसर मयंक वाहिया ने अपने संबोधन में कहा मुख्यधारा से कटी रहने वाली ये जनजातियां खगोल विज्ञान के बारे में सामान्य लोगों से कहीं अधिक महत्वपूर्ण जानकारियां रखती हैं। उनका खगोलीय ज्ञान आध्यात्मिक मान्यताओं और किंवदंतियों से जुड़ा हो सकता है, लेकिन उसमें गहरी वैज्ञानिकता भी समाहित है। उन्होंने गोंड जनजाति का विशेष उल्लेख करते हुए बताया कि उनका खगोल संबंधी ज्ञान अन्य जनजातियों से काफी समृद्ध है। ये जनजातियां सप्तऋषि, ध्रुवतारा, त्रिशंकु तारामंडल, मृगशिरा, कृतिका और वृषभ, सिंह, मिथुन और वृश्चिक राशियों के बारे में विस्तृत जानकारी रखती हैं।
प्रोफेसर वाहिया ने बताया कि इन जनजातियों के खगोलीय ज्ञान में ज्यादातर मिथकीय कहानियों का समावेश होता है, जिसमें आकाशीय पिंडों को लेकर विभिन्न किंवदंतियां और धार्मिक मान्यताएं जुड़ी होती हैं। उदाहरण के तौर पर, गोंड जनजाति के लोग सप्तऋषि तारामंडल के चार तारों से बनी आयताकार आकृति को चारपाई और शेष तीन तारों को आकाशगंगा की ओर जाने वाला रास्ता मानते हैं। उनका मानना है कि इस चारपाई पर लेटकर लोग उस रास्ते से मोक्षधाम को जाते हैं। इसी प्रकार अन्य जनजातियां आकाशगंगा को मोक्ष का मार्ग मानती हैं और हर नक्षत्र व राशि के तारामंडलों को लेकर उनकी अपनी अलग अवधारणाएं होती हैं।
प्रोफेसर वाहिया ने बंजारा, कोलम और कोरकू जनजातियों का भी उल्लेख किया, जो विभिन्न देवी-देवताओं के साथ खगोलीय पिंडों की कथाओं को जोड़ती हैं। ये जनजातियां भी आधुनिक खगोल-वैज्ञानिक विश्लेषणों की तरह ही आकाश में तारामंडलों की बनावट और उसकी स्थितियों के आधार पर भविष्यवाणियां करती हैं। उन्होंने बताया कि भौर के तारे और सांध्यतारा के नाम से मंगल और शुक्र ग्रहों की भी उन्हें अच्छी जानकारी है। उनका मानना है कि ये दोनों ग्रह हर अठारह महीने के अंतराल पर एक-दूसरे के निकट आते हैं और इसलिए वे इस समय को विवाह के लिए शुभ मानते हैं।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए उन्नत सामग्री एवं प्रक्रिया अनुसंधान संस्थान (एमपीआरआई) भोपाल के निदेशक डॉ. अविनाश कुमार श्रीवास्तव ने कहा भारत की पृथक जनजातियां इन स्वतंत्र रूप से विकसित विचारों और धारणाओं को संरक्षित रखती हैं और आकाश की व्याख्या अपनी तरह से करती हैं। उन्होंने भारतीय अंतरिक्ष दिवस के अवसर पर एस्ट्रोनॉमी के क्षेत्र में भारत द्वारा की गई उपलब्धियों के बारे में भी जानकारी दी।
संग्रहालय के निदेशक प्रो. अमिताभ पांडे ने अपने संबोधन में श्रोताओं से आग्रह किया कि वे अधिक से अधिक जनजातियों की कहानियां एकत्र करने में मदद करें, ताकि आधुनिकता की दौड़ में लुप्त होने से पहले इन परंपराओं का दस्तावेजीकरण किया जा सके। उन्होंने कहा कि इन जनजातियों का खगोलीय ज्ञान अत्यंत मूल्यवान है, जिसे संरक्षित और संरक्षित किया जाना चाहिए।
कार्यक्रम का संचालन सहायक कीपर गरिमा आनंद ने किया। अशोक वर्धन, सहायक कीपर ने स्वागत भाषण दिया और प्रोफेसर मयंक वाहिया का परिचय कराया। इसके बाद, निदेशक प्रो. अमिताभ पांडे ने प्रोफेसर वाहिया और डॉ. अविनाश कुमार श्रीवास्तव को बुके, शाल और संग्रहालय का प्रतीक चिन्ह देकर सम्मानित किया। धन्यवाद ज्ञापन संग्रहालय के सहायक मोहन लाल गोयल ने किया।
'आदिवासी खगोल विज्ञान' पर आयोजित इस व्याख्यान ने जनजातियों के खगोलीय ज्ञान की महत्ता को उजागर किया और इस बात पर बल दिया कि इस ज्ञान को संरक्षित करना और इसे आधुनिक खगोल-विज्ञान के साथ जोड़ना अत्यंत आवश्यक है। यह आयोजन न केवल आदिवासी संस्कृति के प्रति जागरूकता बढ़ाने का माध्यम बना, बल्कि यह भी सिद्ध किया कि भारतीय जनजातियां खगोल विज्ञान के क्षेत्र में कितना समृद्ध और सटीक ज्ञान रखती हैं।
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