कोचिंग

कोचिंग संस्थानों के मकड़-जाल में उलझा भारत का भविष्य

विशेष टिप्पणी : राजकुमार बरूआ, भोपाल

गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु गुरुर्देवो महेश्वर:।  गुरुः साक्षात् परं ब्रह्म तस्मै श्री गुरुवे नमः॥ 

भोपाल। भारत को ज्ञान का सूरज कहा गया है हमारे यहां की गुरु-शिष्य परंपरा को ईश्वर भक्ति से भी पहले माना गया है हम हमेशा से ही ज्ञान-विज्ञान, संस्कार और सभ्यता में अग्रणी रहे हैं हमारे यहां की शिक्षा पद्धति को दुनिया ने देखा है समझा और भारत आकर हमारी शिक्षा पद्धति को ग्रहण करके अपने देश में ले जाकर शिक्षा का वहां विस्तार किया है, भारत में गुरुकुल विद्या इतनी सुदृढ़ रही है जिसकी मिशाल आज भी दी जाती है और आज भी इस बात की मांग की जाती है कि गुरुकुल की स्थापना पुनः होना चाहिए और शिक्षा पद्धति में बदलाव कर पुरानी परंपरा को लागू करना चाहिए पर यह एक अलग विषय है जिस पर हम कभी और बात करेंगे,हम आज बात कर रहे हैं वर्तमान समय में कोचिंग संस्थानों के द्वारा भ्रामक प्रचार कर विद्यार्थियों को को अपने मकड़-जाल में फंसा कर उनके भविष्य के साथ खिलवाड़ करने के बारे में, वर्तमान समय शिक्षा के लिए अति महत्वपूर्ण है आज के समय में सिर्फ पढ़ना या यूं भी कह सकते हैं स्कूली शिक्षा से लेकर कॉलेज की शिक्षा या मास्टर डिग्री तक की शिक्षा भी पर्याप्त नहीं मानी जाती, आज का विद्यार्थी पढ़ने के मामले में ज्यादा से ज्यादा ज्ञान पाने की ललक के साथ अपने सुंदर भविष्य के निर्माण के लिए अत्यधिक मेहनत कर रहा है और वहां 24 घंटे में से 16 घंटे तक पढ़ाई करके अपने लक्ष्य को पाने के लिए जी-जान से लगा है आज के छात्रों की इसी लगन का फायदा शिक्षा का व्यापार कर रहे लोगों द्वारा उठाया जा रहा है, कोचिंग संस्थानों द्वारा भ्रामक प्रचार तो किया ही जाता है साथ ही छात्रों के मन में पढ़ाई का डर बिठाकर उनका फायदा उठाया जाता है और उनसे मनमानी फीस वसूल करके उनका दोहन किया जा रहा है हम काफी समय से देख रहे हैं की कोचिंग संस्थानों की तो जैसे बाड़ सी आ गई है कुछ शहरों की पहचान तो अपनी कोचिंग संस्थानों के लिए ही होने लगी है और वहां शिक्षा के लिए कोचिंग की बड़ी-बड़ी फैक्ट्रियां लगा दी गई है और वहा शहर अपना मूल स्वरूप खोकर शिक्षा के अखाड़े के रूप में पहचाना जा रहा है इन शहरों को शिक्षा के व्यापारियों द्वारा सिर्फ बदनामी ही नहीं मिल रही बल्कि लोग आज उन शहरों में जाने से भी डरने लगे हैं असंख्य ऐसी घटनाएं हैं जहां पर विद्यार्थियों ने असफलता के डर से मौत को गले लगाया है और यह सफलता और असफलता का डर भी इन्हीं कोचिंग संस्थानों के द्वारा विद्यार्थियों के मन में डाला गया है यदि हम बात भोपाल की भी करें तो भोपाल का एमपी नगर क्षेत्र अपनी कोचिंगों संस्थाओं के लिए जाना जाता है जो मूल रूप से व्यापारिक गतिविधियों के लिए बनाया गया था, यहां दड़बे नुमा कमरों में असंख्य कोचिंग संस्थाएं चल रही है एक-एक कोचिंग में प्रतिदिन 500 से 600 बच्चे तक पढ़ने आते हैं यहां पर आप बच्चों को दिए जाने वाली सुविधा की तो बात ही नहीं कर सकते उनको पीने के पानी से लेकर बाथरूम तक की समस्या के साथ ही यदि छात्र अपनी गाड़ी से जाता है तो पार्किंग के लिए भी उसको पैसे देने पड़ते हैं और यदि वह छात्र थोड़ी भी देर से पहुंचता है तो उसका फाइन अलग से देना पड़ता है कुल मिलाकर एक बहुत बड़ा उद्योग बनाकर कोचिंग संस्थानों की फैक्ट्री को चलाया जा रहा है जहा पर भविष्य का डर दिखा कर छात्रों के वर्तमान को छीना जा रहा है आज का विद्यार्थी इतना डरा हुआ है कि पढ़ने के सिवा उसको कुछ भी नजर नहीं आता और वहां ना तो अपने परिवार के लिए समय दे पता है ना दोस्तों के लिए या खुद के मनोरंजन के लिए भी,वह सिर्फ पढ़ रहा है पढ़ रहा है और पढ़ रहा है, आज आप कहीं भी देख लें बड़ी-बड़ी कोचिंग संस्थाएं हैं जिसमें एक दिन में हजारों बच्चे पढ़ने आते हैं और जब उनका रिजल्ट आता है तो उसमें से मुश्किल से 20 से 25 प्रतिशत विद्यार्थी ही सफल हो पाते हैं कई बार यह आंकड़ा और भी कम होता है पर उन कोचिंग संस्थानों द्वारा ऐसा भ्रामक प्रचार किया जाता है कि हमारी संस्था के द्वारा पड़ा हुआ बच्चा ही एग्जाम में सफल हो रहा है और मेरिट लिस्ट में भी अपना नाम दर्ज कर रहा है प्रतिदिन 2000 बच्चे तक एक संस्था में पढ़ रहे हैं जिसमें से 120 या 140 बच्चे पास होते हैं और उन 120 बच्चों के द्वारा प्राप्त सफलता को इन कोचिंग संस्थानों द्वारा पूरे शहर के होर्डिंगों और सोशल मीडिया से भर दिया जाता है और ऐसा लगता है कि बस यही एक संस्था है जो आपके बच्चों को जीवन में अपने लक्ष्य को पाने में मदद कर सकती है पर ऐसा है नहीं, शिक्षा से बड़ा कोई व्यापार इस समय है ही नहीं यहा तो छात्रों को डरा कर उनके मन मस्तिक पर कब्जा कर उनका दोहन किया जा रहा है और बाकी दुनिया और अपने परिवार से भी उसे दूर किया जा रहा। आज के शिक्षक भी अपना सम्मान खो चुके हैं वहां एक व्यापारी के तौर पर छात्रों से व्यवहार करते हैं और छात्रों द्वारा भी अपने शिक्षकों का सम्मान नहीं किया जाना इसी व्यापारिक दृष्टि की ही देन है, वर्तमान में कोई नहीं कहता,

"गुरू गोविन्द दोऊ खड़े, काके लागूं पांय।

बलिहारी गुरू अपने गोविन्द दियो बताय।।"

आज का शिक्षक सिर्फ अपना सम्मान ही नहीं खो रहा है बल्कि वहा अपने ही देश के भविष्य के साथ खिलवाड़ कर रहा है और छात्रों को अवसाद ग्रस्त बना रहा है क्योंकि छात्र एक ही दिशा में भागते रहता है और कभी वह उसमें असफल हो जाता है तो उसको कोई दूसरा रास्ता या विकल्प दिखता नहीं है जिस कारण वह कई बार आत्महत्या भी कर लेता है ऐसी अनेकों घटनाओं के बारे में सभी जानते हैं, कोचिंग संस्थानों की मनमानी की एक घटना भी हाल ही में दिल्ली में हुई जिसकी चारों तरफ जोरों से चर्चा हो रही है इस घटना में जिन छात्रों ने अपना बलिदान दिया है उनका बलिदान व्यर्थ नहीं जाना चाहिए और कोचिंग संस्थानों के लिए कड़े नियम लागू कर इन शिक्षा की फैक्ट्रीयों पर अंकुश लगाने के लिए कठोर से कठोर कानून बनना चाहिए, स्कूल से लेकर कॉलेज या उससे ऊपर की संस्थाएं भी सिर्फ और सिर्फ प्रपंच के जरिए ही अपना व्यापार कर रहे हैं वर्तमान में प्राइवेट संस्थानों का एकाधिकार ( मोनोपाॅली ) बनी हुई है जो इन संस्थाओं को संचालित करती है, हम बात कर रहे हैं स्कूल के लेकर है हायर एजुकेशन तक की जो हर साल अपनी फीस में वृद्धि कर रही हैं और इसके सिवा भी अनेक तरीकों से छात्रों से पैसा उगाई करती हैं, सरकारों को इन सारी बातों पर गंभीरता से विचार करके कुछ नए कानून बनाकर इन जैसी संस्थाओं पर लगाम लगाना चाहिए, जिससे हमारे बच्चे आनंदित होकर शिक्षा को प्राप्त कर सकें और अपने भविष्य को मजबूत कर देश के विकास में अपना योगदान दे सके, इसके लिए जरूरी है की सरकारें अपनी शैक्षणिक संस्थानों में सुधार के साथ ही सुविधा का विस्तार करें जिससे इनमें अधिक से अधिक बच्चे शिक्षा पा सकें, वर्तमान में रोजगार के अवसर कम होने के कारण लगभग हर परिवार में बच्चों को शिक्षा के लिए  महंगी से महंगी संस्था में भेजा जाता है और बच्चों से उम्मीद की जा रही है कि वह बेहतर परिणाम के साथ ही अपने भविष्य के लिए मजबूत आधार बनाकर आर्थिक तौर पर परिवार में मजबूत स्तंभ बने, यह पर परिवार भी बच्चों के प्रति अति महत्वाकांक्षी हो रहा है जिसका असर भी बच्चों पर ही पड़ रहा है तो परिवार को भी चाहिए कि अपनी महत्वाकांक्षाओं को बच्चों के ऊपर न डालें उन्हें उनकी रुचि अनुसार शिक्षा चुनने का अधिकार दें और उन्हें एक अच्छा माहौल देखकर आनंदित होकर शिक्षा प्राप्त करने दें जो सिर्फ उन्हें खुशी ही नहीं देगा बल्कि परिवार के साथ बांधकर रखेगा, परिवार से बड़ी कोई दूसरी शक्ति नहीं है बच्चों को ऐसा माहौल दें जिससे वह अपने परिवार में अपनी मन की बात कर सके और वह कोई भी ऐसा कदम न उठाए जो परिवार के साथ ही समाज के लिए भी घातक सिद्ध हो। 

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