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भारत की समृद्ध हर्बल चिकित्सा पद्धतियों को वैश्विक स्तर पर पहचान दिलाएगा अंततराष्ट्रीय सम्मेलन 'पूर्व लोकमंथन'

अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन "पूर्व लोकमंथन" 21 एवं 22 सितंबर को मानव संग्रहालय में होगा आयोजित, मंगलवार को सम्मेलन के पोस्टर का हुआ विमोचन, कार्यक्रम का उद्देश्य चिकित्सा पद्धति के प्रति जन-जागरूकता बढ़ाना

भोपाल। इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मानव संग्रहालय में 21 और 22 सितंबर को अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन "पूर्व लोकमंथन" का आयोजन किया जा रहा है। इस सम्मेलन का मुख्य विषय "वाचिक परंपरा में प्रचलित हर्बल उपचार प्रणालियां: संरक्षण, संवर्धन और कार्य योजना" है। भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मानव संग्रहालय, प्रज्ञा प्रवाह, एंथ्रोपोस इंडिया फाउंडेशन, माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय और दंत्तोपंथ ठेंगड़ी शोध संस्थान के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित इस सम्मेलन में दुनियाभर के विद्वान, शोधकर्ता और हर्बल उपचार के विशेषज्ञ हिस्सा लेंगे।

सम्मेलन के उद्देश्य और मुख्य अतिथि

इस सम्मेलन का उद्देश्य वाचिक परंपरा में प्रचलित हर्बल उपचार प्रणालियों का संरक्षण और संवर्धन करना है। इस आयोजन का लक्ष्य पारंपरिक हर्बल ज्ञान को संरक्षित करने के लिए कार्य योजनाओं का निर्माण करना है। सम्मेलन में पद्मश्री यानिंग जमोह लेगो (अरुणाचल प्रदेश) विशेष अतिथि के रूप में शामिल होंगे। इसके अलावा इस सम्मेलन में गैर-संहिताबद्ध हर्बल उपचार, जलवायु परिवर्तन, जैव विविधता, स्वास्थ्य संचार जैसे महत्वपूर्ण विषयों पर शोध पत्र और अकादमिक पोस्टर प्रस्तुत किए जाएंगे।


प्रमुख वक्ता और सहयोगी संस्थान

इस सम्मेलन में देश-विदेश के विशेषज्ञ और विद्वान अपनी उपस्थिति दर्ज कराएंगे। इनमें प्रज्ञा प्रवाह के अखिल भारतीय संयोजक जे. नंदकुमार, प्रज्ञा प्रवाह के अध्यक्ष प्रो. बृजकिशोर कुठियाला, प्रो. (डॉ.) केजी सुरेश, निदेशक प्रो. (डॉ.) अमिताभ पांडे, एंथ्रोपोस इंडिया फाउंडेशन की संस्थापक अध्यक्ष और एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. सुनीता रेड्डी, और अन्य प्रमुख संस्थानों के विशेषज्ञ शामिल हैं। इस अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में पूर्वी एशियाई देशों के विद्वान भी अपने विचार प्रस्तुत करेंगे।

जनजातीय ज्ञान और हर्बल उपचार पर केंद्रित सम्मेलन

निदेशक प्रो. (डॉ.) अमिताभ पांडे ने जनजातीय समाज के हर्बल ज्ञान की महत्ता पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि जनजातियां अपनी जीवनोपयोगी आवश्यकताओं के लिए वन्य प्राणियों और वनस्पतियों पर निर्भर रहती हैं। इनके पास रोगों के उपचार के लिए अपनी ही चिकित्सा प्रणाली होती है, जिसमें जड़ी-बूटियों का प्रमुख रूप से उपयोग किया जाता है। यह सम्मेलन इस हर्बल ज्ञान को संरक्षित करने की दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।


पूर्व लोकमंथन और हर्बल हीलर्स वर्कशॉप

सम्मेलन के दौरान एक पांच दिवसीय हर्बल हीलर्स वर्कशॉप भी आयोजित की जाएगी, जिसमें पारंपरिक चिकित्सक अपने हर्बल उपचार के अनुभव और औषधीय ज्ञान को साझा करेंगे। इस वर्कशॉप में मरीजों का इलाज भी किया जाएगा और छात्रों व शोधार्थियों को पारंपरिक हर्बल चिकित्सा प्रणालियों का प्रत्यक्ष अनुभव प्राप्त होगा।

शोध और प्रकाशन पर विशेष ध्यान

प्रो. (डॉ.) केजी सुरेश ने बताया कि विश्वविद्यालय इस सम्मेलन को जनसंचार के माध्यम से अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। इसके लिए देशभर के शोधार्थियों से शोध पत्र आमंत्रित किए गए हैं, जिनका बाद में प्रकाशन भी किया जाएगा। सम्मेलन के शोध पत्रों की समीक्षा और प्रकाशन का समन्वय एमसीयू द्वारा किया जाएगा।

सम्मेलन की महत्ता

भारत में कई जनजातियां और वनवासी अपनी हर्बल उपचार पद्धतियों के माध्यम से बीमारियों का इलाज करते हैं। इस सम्मेलन का उद्देश्य इन पारंपरिक ज्ञान प्रणालियों को संरक्षित करना और इन्हें जनमानस तक पहुंचाना है। ग्रामीण भारत में औपचारिक स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी के कारण, गैर-संहिताबद्ध हर्बल उपचार प्रणालियां अभी भी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। इस सम्मेलन के माध्यम से इन पारंपरिक उपचार प्रणालियों के संरक्षण और संवर्धन की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाए जाएंगे।


विशेष सत्र और प्रस्तुतियां

सम्मेलन के दौरान विभिन्न सत्रों का संचालन जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, दिल्ली विश्वविद्यालय, और एमसीयू के विद्वानों द्वारा किया जाएगा। सत्रों में हर्बल उपचार प्रणालियों, जैव विविधता और पारंपरिक चिकित्सा प्रणालियों पर विस्तृत चर्चा होगी। छात्रों और आमजन को भी इन सत्रों में भाग लेने का अवसर मिलेगा, जिससे वे हर्बल ज्ञान की समृद्ध परंपरा को समझ सकेंगे।

इस अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन के माध्यम से भारत की समृद्ध हर्बल चिकित्सा पद्धतियों को वैश्विक स्तर पर पहचान दिलाने की कोशिश की जाएगी। यह आयोजन न केवल पारंपरिक ज्ञान के संरक्षण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है, बल्कि इसके माध्यम से जन-जागरूकता बढ़ाने और हर्बल उपचार प्रणालियों के प्रति लोगों की रुचि को भी प्रोत्साहित किया जाएगा।

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