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विश्व रंग के अंतर्गत हिंदी दिवस के उपलक्ष्य में छह विश्वविद्यालयों में 'हिंदी पखवाड़े' का शुभारंभ

विश्व में हिंदी : हिंदी का विश्व: विषय पर हुआ अंतरराष्ट्रीय परिसंवाद, हिंदी अर्जन पाठ्यक्रम 'नींव' का किया प्रस्तुतीकरण, अमेरिका, कनाडा, श्रीलंका और भारत के रचनाकारों ने की भागीदारी

हिंदी पखवाड़े' का भव्य शुभारंभ, वैश्विक स्तर पर हिंदी का प्रसार

भोपाल। रबीन्द्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय में हिंदी दिवस के उपलक्ष्य में 'विश्व रंग' के अंतर्गत 'हिंदी पखवाड़े' का भव्य शुभारंभ हुआ। इस महत्वपूर्ण आयोजन का उद्देश्य वैश्विक स्तर पर हिंदी भाषा के प्रचार-प्रसार को बढ़ावा देना और प्रवासी साहित्यकारों द्वारा हिंदी साहित्य में किए गए योगदान को मान्यता देना था। टैगोर अंतरराष्ट्रीय हिंदी केंद्र, प्रवासी भारतीय साहित्य एवं संस्कृति शोध केंद्र और मानविकी एवं उदार कला संकाय ने मिलकर इस आयोजन को सफलतापूर्वक अंजाम दिया।

'विश्व में हिंदी: हिंदी का विश्व' विषय पर अंतरराष्ट्रीय परिसंवाद का आयोजन

हिंदी पखवाड़े के शुभारंभ में कथा सभागार, रबीन्द्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय में 'विश्व में हिंदी: हिंदी का विश्व' विषय पर एक अंतरराष्ट्रीय परिसंवाद आयोजित किया गया। इस परिसंवाद के माध्यम से हिंदी भाषा के वैश्विक महत्व और इसके प्रसार पर विस्तार से चर्चा की गई। कार्यक्रम की शुरुआत दीप प्रज्वलन के साथ हुई, जिसके बाद डॉ. संगीता जौहरी, प्रतिकुलपति, रबीन्द्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय ने स्वागत उद्बोधन दिया और अतिथियों का अंगवस्त्रम और प्रतीक चिन्ह भेंट कर अभिनंदन किया गया।


हिंदी अर्जन पाठ्यक्रम और प्रवासी साहित्य का लोकार्पण

इस अवसर पर टैगोर अंतरराष्ट्रीय हिंदी केंद्र द्वारा वैश्विक स्तर पर हिंदी पठन-पाठन के लिए तैयार किए गए 'हिंदी अर्जन पाठ्यक्रम' का भी प्रस्तुतीकरण किया गया, जो हिंदी के प्रसार और उसके व्यवस्थित अध्ययन के लिए एक महत्वपूर्ण पहल है। इसके साथ ही प्रवासी साहित्य श्रृंखला की पुस्तक 'कनाडा की चयनित रचनाएं' का भी लोकार्पण किया गया, जिसे डॉ. दीपक पाण्डेय और डॉ. नूतन पाण्डेय ने संपादित किया। इस पुस्तक में कनाडा के प्रवासी साहित्यकार धर्मपाल महेन्द्र जैन की रचनाओं का चयन किया गया है, जो हिंदी साहित्य में उनके अमूल्य योगदान को दर्शाता है।

वैश्विक स्तर पर हिंदी का विस्तार: प्रवासी साहित्यकारों की भूमिका

धर्मपाल महेन्द्र जैन, जो कनाडा के वरिष्ठ साहित्यकार हैं ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में हिंदी के वैश्विक प्रसार पर जोर दिया। उन्होंने बताया कि टोरंटो, कनाडा में उन्होंने हिंदी के प्रचार-प्रसार के लिए एक संस्था की स्थापना की है, जिसमें 400 से अधिक सदस्य सक्रिय रूप से जुड़े हुए हैं। इसके अलावा उन्होंने कैदियों के लिए हिंदी सिखाने के उद्देश्य से चार मार्गदर्शिकाएं भी तैयार की हैं। धर्मपाल महेन्द्र जैन ने हिंदी के विकास के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को रेखांकित करते हुए कहा कि हिंदी को वैश्विक स्तर पर और अधिक सुदृढ़ करने की आवश्यकता है।


मुख्य अतिथि डॉ. अदिति चतुर्वेदी वत्स के विचार

कार्यक्रम की मुख्य अतिथि डॉ. अदिति चतुर्वेदी वत्स, प्रति कुलाधिपति, रबीन्द्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय ने हिंदी के प्रति अपनी भावनाएं प्रकट करते हुए कहा कि आईसेक्ट समूह का मूल आधार हिंदी भाषा रही है। उन्होंने बताया कि आईसेक्ट के अध्यक्ष संतोष चौबे ने चालीस वर्ष पहले हिंदी में 'कम्प्यूटर एक परिचय' पुस्तक लिखकर हिंदी के तकनीकी क्षेत्र में भी योगदान की नींव रखी थी। डॉ. अदिति ने कहा कि हिंदी दिवस के उपलक्ष्य में आईसेक्ट समूह के सभी छह विश्वविद्यालयों रबीन्द्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय, डॉ. सीवी रमन विश्वविद्यालय, खंडवा और बिलासपुर आईसेक्ट विश्वविद्यालय, हजारीबाग और वैशाली में हिंदी पखवाड़े का आयोजन किया गया है। इन कार्यक्रमों के माध्यम से हिंदी के व्यापक प्रचार-प्रसार के लिए विभिन्न रचनात्मक आयोजन किए जाएंगे।

अंतरराष्ट्रीय अतिथियों के अनुभव और हिंदी की स्थिति

विशिष्ट अतिथि अनुराग शर्मा, संपादक 'सेतु' (अमेरिका) ने हिंदी के प्रति अपने अनुभव साझा करते हुए कहा कि हिंदी के प्रति लगाव हर देश में महसूस किया जा रहा है। उन्होंने 'सेतु' पत्रिका की शुरुआत की, जो आज कई देशों में लोकप्रिय हो चुकी है। उन्होंने कहा कि हिंदी के विकास के लिए सभी भारतीय भाषाओं और बोलियों को साथ लेकर चलना होगा, तभी हिंदी का व्यापक विकास संभव हो सकेगा।


कनाडा की वरिष्ठ लेखिका हंसा दीप ने भी हिंदी अध्यापन के अपने अनुभव साझा किए। उन्होंने कहा कि भले ही वे कनाडा में रहती हैं, लेकिन उनकी हिंदी ही उनकी पहचान है। उन्होंने हजारों लोगों को हिंदी सिखाई है और आज भी टोरंटो में हिंदी प्राध्यापक के रूप में कार्यरत हैं। हंसा दीप ने कहा कि हमें हिंदी के प्रति अपनी हीन भावना को त्यागना होगा और हिंदी के प्राध्यापकों को भी उतनी ही इज्जत दी जानी चाहिए जितनी अंग्रेजी के प्रोफेसरों को दी जाती है।

श्रीलंका से आए अतिथि अतिला कोतलावल ने श्रीलंका में हिंदी के प्रति लोगों के बढ़ते प्रेम का जिक्र किया। उन्होंने कहा कि श्रीलंका के विश्वविद्यालयों और विद्यालयों में हिंदी वैकल्पिक विषय के रूप में पढ़ाई जाती है। हिंदी फिल्मों और गीतों के प्रति श्रीलंकाई लोगों का विशेष लगाव है, जो हिंदी के प्रति उनके प्रेम को दर्शाता है।


हिंदी के प्रचार-प्रसार में संस्थानों की भूमिका

डॉ. दीपक पाण्डेय, सहायक निदेशक, केन्द्रीय हिंदी निदेशालय, भारत सरकार, नई दिल्ली ने हिंदी के व्यापक प्रचार-प्रसार में संस्थानों की भूमिका को महत्वपूर्ण बताया। उन्होंने कहा कि हिंदी निदेशालय इस दिशा में महत्वपूर्ण योगदान दे रहा है। इसके अलावा डॉ. नूतन पाण्डेय ने कहा कि प्रवासी भारतीयों द्वारा हिंदी के प्रचार-प्रसार के प्रयासों को एकजुट करने से हिंदी का दायरा और विस्तृत हो सकता है।


समापन और भविष्य की दिशा

कार्यक्रम का संचालन डॉ. जवाहर कर्नावट, निदेशक, टैगोर अंतरराष्ट्रीय हिंदी केंद्र ने किया। कार्यक्रम के अंत में विनय उपाध्याय, निदेशक, टैगोर विश्व कला एवं संस्कृति केंद्र ने सभी का आभार व्यक्त किया। इस अवसर पर बड़ी संख्या में प्राध्यापक, विद्यार्थी और साहित्य प्रेमी उपस्थित रहे।

इस आयोजन ने स्पष्ट किया कि हिंदी का वैश्विक प्रसार हो रहा है और हिंदी साहित्य के माध्यम से प्रवासी भारतीय साहित्यकारों का योगदान भी हिंदी भाषा को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहुंचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। हिंदी पखवाड़े के इस आयोजन ने न केवल हिंदी के प्रति प्रेम को बढ़ाया बल्कि इसकी महत्ता को भी और मजबूत किया। 


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