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निर्माण से निर्वाण तक में दिखाई दिया भगवान बुद्ध के विचार और जीवन दर्शन

भारत भवन में निमाड़ी गीतों से सजी महफिल, नाटक निर्माण से निर्वाण तक का हुआ मंचन

भोपाल। भारत भवन में आयोजित 42वें वर्षगांठ समारोह में शुक्रवार को संगीतमयी संध्या का आगाज लोकगीतों की प्रस्तुति के साथ हुआ। पहले जहां कला प्रेमियों को युवा कलाकारों द्वारा प्रस्तुत लोक परंपरा पर केंद्रित निमाड़ी मधुर गीतों को सुनने का अवसर मिला। वहीं, उसके उपरांत नाटक निर्माण से निर्वाण तक की प्रस्तुति देखने को मिली। श्री बिपिन कुमार द्वारा निर्देशित इस नाटक की प्रस्तुति भारतेन्दु नाट्य अकादमी लखनऊ के कलाकारों ने दी। मूलरूप से उड़िया में लिखे इस नाटक को बड़ी ही सूझबूझ के साथ हिंदी में रूपांतरित कर बेहतर कला निर्देशन के माध्यम से दर्शकों तक पहुंचाने का प्रयास किया। नृत्य, संगीत, नाट्य प्रस्तुति और रचना पाठ पर आधारित इस उत्सव में एक तरफ जहां यशी गीते एवं साथी युवा गायकों के कंठ से झिरते लोकगीत थे, तो दूसरी तरफ कलाकारों ने भगवान गौतम बुद्ध के विचारों और उनके मन के अंतर्द्वंद को नाट्य प्रस्तुति के माध्यम से दिखाया।

इन गीतों की दी प्रस्तुति

पूर्वरंग में प्रस्तुति की शुरूआत सुश्री यशी गीते ने नर्मदा जयंती अवसर पर मां नर्मदा की आराधना स्वरूप गीत अमरकंठ से आया वो, लयर लयर लयराव हो... को सुनाया। इसके बाद उन्होंने बसंत ऋतु पर केंद्रित लोकगीत चंचल हवा छे बसंती सखि म्हारो पल्लव उडाव... की प्रस्तुति दी। प्रस्तुति के क्रम को आगे बढ़ाते हुए युवा गायक कलाकारों के समूह ने मटकी माटी की बणी वो फूट गयी ववू जी का हाथ... लोकगीत सुनाया। इसी क्रम में सुश्री यशी गीते ने निमाड़ी भजन भोले बाबा तो नंदी प सवार दर्शन कर आया रे राम दरबार... सुनाकर माहौल को भक्तिमयी बनाया। होरी गीत में कलाकारों ने होरी खेल महादेव अरु गवरा... को सुनाया। इसके साथ ही कलाकारों ने अंत में हंसी ठिठोली होरी पर केंद्रित लोकगीत देवर म्हारो रे, यो हरिया रुमाल वालों देवर म्हारो रे... को सुनाकर प्रस्तुति को विराम दिया। सुश्री यशी गीते की इस प्रस्तुति में उनके साथ सलोनी सोहनी, खुशी ठाकुर और मंजरी ठाकुर ने सहगायन में साथ दिया। वहीं, हारमोनियम पर श्री नरेन्द्र गीते, टपला पर श्री प्रवीण गीते, बांसुर पर श्री नितेश मागरोले, ढोलक पर श्री अक्षत गीते और झांझ पर श्री जगदीश पाटीदार ने संगत दी। 


बुद्धं शरणं गच्छामि...से हुई नाटक की शुरुआत

नाटक की शुरुआत बुद्धं शरणं गच्छामि... के साथ हुई। लगभग डेढ़ मिनट के इस आहवान के बाद नाटक में दिखाया गया कि प्रमुख पात्र नीललोहित और इच्छामती गौतम बुद्ध के युवावस्था के विचारों का प्रतिनिधित्व करते हैं और उनके मन के विभिन्न चरणों को दशार्ते हैं। नीललोहित-भ्रमित है, जबकि इच्छामती सबल है। नदी के पहले चरण में पानी का वेग बहुत अधिक होता है, नीललोहित आनन्द के ह्यनियमों व विनियमोंह्ण और इच्छामती के ह्यदृढ़ व मुक्त विचारोंह्ण के बीच फंसा हुआ है। 

बुद्ध इस बात पर चिन्तन करने लगते हैं कि मानवता की भलाई के लिए पर्याप्त पहलुओं की खोज नहीं हुई है और यह भी कि मानवीय इच्छाएं अनन्त और असीम है। उनके संघ में पहले से ही इस बात पर जोर दिया जाता रहा है कि अपेक्षाएं दु:ख का मूल कारण हैं। यह समस्त विचार भी गौतम को संतुष्ट नहीं कर पाते, इसलिए वह आगे के शोध व पुनराविष्कार के बारे में सोचते हैं और पत्नी से मिलने के बाद ही पुनरारम्भ करने का फैसला करते है।  नाटक के अन्तिम दृश्य में बुद्ध पुत्र को सीख देते हैं, जिसमें वह उसे अपना रास्ता स्वयं निर्मित करने और अपने जीवन का उद्देश्य परिभाषित करने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।

90 मिनट और 19 कलाकार

वर्षगांठ समारोह में यह दूसरी नाट्य प्रस्तुति थी जिसे देखने बड़ी संख्या में कलाप्रेमी पहुंचे। अंतरंग सभागार के बाहर देर शाम से लगी लंबी लाइन कलाप्रेमियों का उत्साह बता रही थी। यही कारण है कि सभागार के बाहर हाऊस फुल का बोर्ड लगाया गया। वहीं 90 मिनट की इस प्रस्तुति में 19 कलाकारों के अभिनय ने भी दर्शकों को अंत तक बांधे रखने में सफलता प्राप्त की। कलाकारों के संवाद और अभिनय कौशल ने प्रस्तुति को प्रभावी बनाया। यह इस नाटक का पांचवा शो था।

मंडला आर्ट का किया प्रदर्शन

नाटक की मंच सज्जा आकर्षित करती है। मंच सज्जा के लिए निर्देशक ने मंडला की ऐतिहासिक इमारतों की कला को पर्दे के माध्यम से दिखाने का प्रयास किया। यही नहीं मधुर संगीत का समावेश और निर्देशक द्वारा किए गए यह प्रयोग प्रस्तुति को प्रभावित बनाते हैं। 

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