इस यात्रा का शुभारंभ भोपाल के ऐतिहासिक गौहर महल से हुआ, जहां सोसायटी के सभी सदस्य एकत्रित हुए। यात्रा की योजना ऐसे समय पर बनाई गई थी जब मानसून की बारिश ने पूरे मार्ग को हरियाली से ढक रखा है। हर तरफ फैली हरी-भरी पहाड़ियां और सुंदर तालाबों के बीच से गुजरते हुए, सभी ने इस प्राकृतिक सौंदर्य का आनंद लिया। गौहर महल से नरसिंहगढ़ के लिए रवाना होते समय बारिश की फुहारों ने इस यात्रा को और भी यादगार बना दिया।
नरसिंहगढ़ महल लगभग 300 मीटर ऊंची एक पहाड़ी पर स्थित है, जो अपने आप में एक अद्भुत दृश्य प्रस्तुत करता है। जैसे-जैसे काफिला पहाड़ी की ओर बढ़ता गया, वैसे-वैसे महल की भव्यता का अनुभव और भी गहराता गया। महल के पास पहुंचते ही सभी सदस्यों की निगाहें उस भव्य प्रवेश द्वार पर ठहर गईं, जिसकी नक्काशी और वास्तुकला में बेमिसाल कला और कौशल की झलक मिलती है।
महल के अंदर प्रवेश करते ही हर एक दीवार, हर एक कोना अपनी ऐतिहासिक गाथा को बयां करता नजर आया। पत्थरों से निर्मित चार मंजिला यह महल अपने आप में मध्यकालीन भारतीय वास्तुकला का एक उत्कृष्ट उदाहरण है। यहां पर हिंदू, मुस्लिम और रोमन आर्किटेक्चर का मिला-जुला स्वरूप देखने को मिला, जो इसे और भी विशेष बनाता है। महल की भव्यता और उसकी ऐतिहासिकता ने सभी सदस्यों को गहरे प्रभावित किया।
महल के प्रवेश द्वार की नक्काशी ने सबका मन मोह लिया। पत्थरों पर की गई महीन कारीगरी और उन पर बनी जटिल डिजाइनें यह दर्शाती हैं कि उस समय के कारीगर कितने कुशल और कलाकार थे। महल के अंदरूनी हिस्से में भी हिंदू, मुस्लिम और रोमन शैलियों का अद्भुत समन्वय देखने को मिला। इस प्रकार की विविधता ने महल को एक अनूठी पहचान दी है, जो उस समय की सांस्कृतिक एकता और विविधता को दर्शाती है।
आईडियल सोसायटी ऑफ इंटीरियर डिजाइनर्स के अध्यक्ष सुयश कुलश्रेष्ठ ने बताया कि इस प्रकार के हेरिटेज टूर का मुख्य उद्देश्य सदस्यों को पारंपरिक निर्माण और आंतरिक सज्जा के बारे में जानकारी देना है। यह महल एक ऐसा स्थान है जहां वास्तुकला, कला और संस्कृति का संगम होता है। इस प्रकार के दौरे सदस्यों को प्राचीन भारतीय वास्तुकला की गहरी समझ प्रदान करते हैं, जो उनके डिजाइन कार्यों में एक नई दृष्टि और प्रेरणा का स्रोत बन सकता है।
महल की खूबसूरत खिड़कियां, जिनमें पत्थर से बनी नक्काशीदार झरोखे थे, सदस्यों के लिए विशेष रुचि का विषय रहीं। चार्टर अध्यक्ष हीना अरशद ने इन खिड़कियों की विशेषताओं के बारे में बताते हुए कहा कि इन झरोखों से आने वाली ताजी हवा न केवल महल के कमरों को ठंडा रखती थी, बल्कि एक सुखद अनुभव भी प्रदान करती थी। इससे यह स्पष्ट होता है कि उस समय भी वास्तुकारों और कारीगरों को वातानुकूलन के प्राकृतिक तरीकों की अच्छी समझ थी। यह जानकारी सदस्यों के लिए अत्यंत उपयोगी सिद्ध हुई, क्योंकि यह उन्हें आधुनिक इमारतों में पारंपरिक तकनीकों को अपनाने के लिए प्रेरित कर सकती है।
सचिव संदीप तिवारी और रूपक राव ने महल के अन्य विशेषताओं के बारे में बताया। उन्होंने महल के खुले बरामदों और आंगनों पर विशेष ध्यान दिया, जो उस समय की जीवनशैली और वास्तुकला की समझ को दर्शाते हैं। महल में खुले बरामदे थे, जहां उस समय महिला शासक अपने परिवार के साथ निवास करती थीं। इन बरामदों और आंगनों में हवा और प्रकाश का उचित प्रवाह सुनिश्चित किया गया था, जो महल के निवासियों के आराम और स्वास्थ्य के लिए आवश्यक था।
महल की आंतरिक सज्जा में राजस्थानी शैली के झरोखे, जो पत्थरों से निर्मित थे, ने सभी का ध्यान खींचा। इन झरोखों से न केवल हवा का अच्छा प्रवाह होता था, बल्कि इनकी बनावट और डिजाइन में उस समय की कला और कारीगरी का बेहतरीन प्रदर्शन होता था। सदस्यों ने महल की इन विशेषताओं का गहन अध्ययन किया और इसे अपने डिजाइन कार्यों में कैसे शामिल किया जा सकता है, इस पर विचार किया।
महल में घूमते हुए सदस्यों ने उस समय की जीवनशैली और वास्तुकला की गहराई को महसूस किया। महल के विभिन्न हिस्सों का निरीक्षण करते हुए, सभी ने उस समय की कारीगरी और निर्माण तकनीकों की सराहना की। महल की बनावट और सज्जा ने सभी को यह समझने में मदद की कि उस समय के वास्तुकार और कारीगर कितने कुशल और कल्पनाशील थे।
महल का दौरा करने के बाद, सभी सदस्य चिड़ीखो वन अभयारण्य की ओर रवाना हुए। यह वन अभयारण्य प्राकृतिक सौंदर्य और जैव विविधता का एक अद्भुत उदाहरण है। सदस्यों ने यहां विभिन्न प्रकार के वन्यजीवों और वनस्पतियों का अवलोकन किया। यह अनुभव उनके लिए न केवल आनंददायक था, बल्कि उन्हें प्रकृति के प्रति सम्मान और संवेदनशीलता की भी भावना उत्पन्न हुई।
वन विश्राम गृह में आयोजित दाल बाटी के भोजन ने इस यात्रा को और भी यादगार बना दिया। सभी ने साथ मिलकर इस पारंपरिक व्यंजन का आनंद लिया और इस अनुभव को साझा किया। यह भोजन न केवल स्वादिष्ट था, बल्कि यह सदस्यों को भारतीय संस्कृति और परंपराओं से जोड़ने का एक माध्यम भी था।
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