भोपाल। पहाड़ों की कठिन राहें हो या जीवन की ऊंची-नीची सीढ़ियां संघर्ष में हमेशा हम अकेले ही होते हैं। यदि हम अपना जोश, जज़्बा या जूनून क़ायम रखें तो हर पहाड़ चढ़ सकते हैं, एवरेस्ट भी। यह बात मध्यप्रदेश के प्रथम एवरेस्टर भगवान सिंह ने हेल्पबॉक्स की जीवन एवं कला संवाद पहल चायनामा में कही। हेल्पबॉक्स सोश्योआर्ट इनिशिएटिव के तहत जीवन एवं कला संवाद की अभिनव श्रृंखला "चायनामा" का आग़ाज़ शनिवार को भोजपुर क्लब में हुआ। इस अवसर पर एवरेस्टर भगवान सिंह और माउंटेनर ज्योति रात्रे ने अपनी अनकही कहानियां साझा कीं। मुख्य अतिथि के रूप में जुझारू आईपीएस अधिकारी शशांक गर्ग उपस्थित थे।
भगवान सिंह ने 11 फ़रवरी को भोपाल में 13 डिग्री सेल्सियस तापमान में हॉफ़ मैराथन पूरा किया था और चार दिन पहले ही पैंगाग झील पर माइनस 15 डिग्री सेल्सियस में हुए मैराथन में नया विश्व रिकार्ड बनाया। भगवान सिंह ने बताया कि एवरेस्ट की चढ़ाई कठिन तो है ही साथ-साथ बहुत ख़र्चीली भी। उनका कुल ख़र्च 25 लाख रुपये हुआ जो सरकार और अन्य संगठनों के सहयोग से पूरा जो सका।आज यही व्यय तक़रीबन 31 लाख रुपये है। भगवान बताते हैं कि मौत और ज़िंदगी साथ-साथ चलती है। वो आठ लोग एक साथ गये थे जिसमें से सिर्फ़ पांच ही एवरेस्ट फ़तह कर पाए और तीन रास्ते में ही गुज़र गए।
पर्वतारोहण जैसे दुर्गम और जोखिम भरे खेल के शौक़ के बारे में विनोदपूर्ण बातचीत में ज्योति रात्रे ने कहा कि जिस उम्र में महिलाएं मीनोपॉज़ सहित घुटनों और ब्लड प्रेशर की शिकायतों से जूझती हैं उस उम्र में मैने ट्रेकिंग करना शूरू किया। बचपन से मेरा सपना था कि कुछ ऐसा करूं जो मिसाल बने। ये सपना तब संभव हुआ जब मैं माउंट एवरेस्ट के बेस कैम्प को पार कर बिलकुल एवरेस्ट के शिखर के नज़दीक पहुंची।
मेरा सफ़र बहुत चुनौतिपूर्ण और कठिनाईयों भरा रहा जिसमें मैने सेल्फ़ ट्रेनिंग और कई कोर्स कर अपने आप को पहाड़ों पर चढ़ने लायक बनाया। मैं अपने बनाए 20 किलो वज़न जैकेट पहन कर मनुआभान की पहाड़ियों पर कई बार चढ़ी और उतरी। डाईट के बारे में बताते हुए ज्योति ने कहा कि मैं ट्रेकिंग या एक्सरसाइज़ के पहले कोई आहार नहीं लेती जिससे मेरी एनर्जी सेव रहती है। उन्होंने बताया कि एवरेस्ट की चढ़ाई के दौरान सत्तू घोलकर पिया जिससे न्यूट्रीशन स्तर बना रहा और इनर्जी भी मिलती रही।
मुख्य अतिथि शशांक
गर्ग ने कहा कि पहाड़ हमेशा अवसर देता है उसने मार्ग बनाने का, ये हम पर है कि कैसे ससम्मान उसका लाभ उठायें।
कार्यक्रम के सूत्रधार सुनिल शुक्ल थे और चर्चा में सहयोग सुनील अवसरकर ने किया।
आभार कविता अवसरकर ने किया।
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