अन्याय,

अन्याय, भेदभाव और गरीबी को उजागर करती मुंशी प्रेमचंद के लेखनी

बाबूलाल गौर महाविद्यालय में मुंशी प्रेमचंद की जयंती पर विचार गोष्ठी का आयोजन, विचार गोष्ठी में प्रेमचंद की रचनाओं के महत्व और लेखनी की गहराई पर हुई चर्चा

भोपाल। बाबूलाल गौर शासकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय भेल में हिंदी विभाग द्वारा मुंशी प्रेमचंद की जयंती पर एक विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया। इस अवसर पर विद्यार्थियों और प्राध्यापकों ने हिंदी साहित्य के कालजयी रचनाकार और कथा सम्राट मुंशी प्रेमचंद के साहित्यिक अवदान का स्मरण किया। कार्यक्रम का समापन डॉ. सुषमा जादौन के धन्यवाद ज्ञापन के साथ हुआ। उन्होंने सभी उपस्थित विद्यार्थियों और प्राध्यापकों को धन्यवाद दिया और मुंशी प्रेमचंद की रचनाओं को पढ़ने और उनसे सीखने की प्रेरणा दी। इस प्रकार यह विचार गोष्ठी विद्यार्थियों और प्राध्यापकों के लिए एक महत्वपूर्ण अवसर साबित हुई जिसमें उन्होंने मुंशी प्रेमचंद के साहित्यिक अवदान का गहराई से अध्ययन किया और उनसे प्रेरणा ली। इस विचार गोष्ठी ने एक बार फिर से सिद्ध कर दिया कि मुंशी प्रेमचंद की रचनाएं समय की सीमाओं को पार करते हुए आज भी समाज में प्रासंगिक हैं और हमें समाज की सच्चाइयों से अवगत कराती हैं। उनके साहित्य को पढ़ना और समझना हमारे समाज को बेहतर बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।

मुख्य वक्ता का उद्बोधन

कार्यक्रम की मुख्य वक्ता अंग्रेजी विभाग की अध्यक्ष डॉ. इला रानी श्रीवास्तव ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा मुंशी प्रेमचंद 20वीं शताब्दी के अमर कथा शिल्पी और उपन्यासकार हैं। उनके उपन्यास और कहानियां न केवल हिंदी साहित्य की धरोहर हैं बल्कि विश्व साहित्य में भी महत्वपूर्ण स्थान रखती हैं। उनके साहित्य में आम आदमी की पीड़ा, गरीबी और छुआछूत जैसी समस्याओं को बड़े प्रभावी ढंग से उकेरा गया है। 

हिंदी विभागाध्यक्ष का उद्बोधन

हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ. सुषमा जादौन ने अपने उद्बोधन में मुंशी प्रेमचंद की भाषा और सामाजिक जीवन के सच्चे चित्रण पर आधारित उनकी प्रसिद्ध कहानियों का उल्लेख किया। उन्होंने पंच परमेश्वर, ईदहाग, बड़े घर की बेटी और बूढ़ी काकी जैसी कालजयी रचनाओं का स्मरण करते हुए युवाओं को उनके साहित्य को पढ़ने की अपील की। डॉ. जादौन ने कहा प्रेमचंद का साहित्य हमें समाज की वास्तविकताओं से रूबरू कराता है और उनके द्वारा उठाए गए मुद्दे आज भी प्रासंगिक हैं। 


विद्यार्थियों का योगदान

महाविद्यालय की छात्राओं श्रीया विश्वकर्मा, वंदना लोधी और मेघा अहिरवार ने कथाकार प्रेमचंद के साहित्यिक कृतित्व पर प्रकाश डाला। उन्होंने प्रेमचंद की कहानियों और उपन्यासों की विशेषताओं पर बात की और उनके द्वारा समाज में लाए गए परिवर्तनों पर चर्चा की।

उपस्थित प्राध्यापक और विद्यार्थी

इस विचार गोष्ठी में डॉ. गरिमा जाउलकर, डॉ. एके महागाये, डॉ. अर्चना शर्मा, डॉ. गीता चौहान, पूनम वरबड़े और महाविद्यालय के अनेक विद्यार्थियों ने सहभागिता की। सभी ने मिलकर प्रेमचंद की रचनाओं के महत्व और उनकी लेखनी की गहराई पर चर्चा की।

कार्यक्रम का उद्देश्य

इस कार्यक्रम का उद्देश्य विद्यार्थियों को मुंशी प्रेमचंद के साहित्य से परिचित कराना और उनके योगदान को समझाना था। प्रेमचंद की कहानियां और उपन्यास न केवल मनोरंजन करते हैं, बल्कि समाज की समस्याओं पर भी गहन दृष्टि डालते हैं। उनकी रचनाएं पाठकों को सोचने पर मजबूर करती हैं और समाज में सकारात्मक बदलाव लाने की प्रेरणा देती हैं।

प्रेमचंद की रचनाओं का महत्व

मुंशी प्रेमचंद की रचनाओं में निहित सामाजिक संदेश आज भी उतने ही महत्वपूर्ण हैं जितने उनके समय में थे। उनकी कहानियां और उपन्यास समाज की वास्तविकताओं को उजागर करते हैं और हमें हमारे समाज की समस्याओं से रूबरू कराते हैं। प्रेमचंद की लेखनी ने समाज में व्याप्त अन्याय, भेदभाव और गरीबी जैसी समस्याओं को उजागर किया है और उनके समाधान के लिए सोचने पर मजबूर किया है। 

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