‘रबीन्द्र वाचनालय’ में चार कहानियों – धन की भेंट, सजा, अंतिम प्यार, और त्याग – को एक सूत्र में पिरोया गया था। इन कहानियों में भारतीय समाज की विभिन्न समस्याओं और मानवीय भावनाओं की गहराई को बड़े प्रभावशाली तरीके से प्रस्तुत किया गया। कहानियों में निहित संदेश आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं, जितने वे गुरुदेव के समय में थे।
‘धन की भेंट’ एक बूढ़े व्यक्ति, जगन्नाथ, की कहानी है, जो अत्यधिक कंजूस होने के कारण अपने परिवार का ख्याल नहीं रख पाता। अपनी कंजूसी के चलते वह अपनी पत्नी और बहू के इलाज में कंजूसी करता है, जिसके कारण उनकी मृत्यु हो जाती है। बेटे और पोते के पलायन के बाद भी वह अपनी कंजूस प्रवृत्ति को नहीं छोड़ता और अंततः अपने पोते की मृत्यु का कारण बनता है। इस हृदयविदारक कहानी के अंत में जगन्नाथ खुद भी पागल होकर प्राण त्याग देता है। इस कहानी ने दर्शकों को धन के प्रति असंगत मोह के परिणामों की याद दिलाई।
‘सजा’ दो भाइयों की कहानी है, जिनके जीवन में पारिवारिक कलह हावी है। एक दिन बड़े भाई द्वारा अपनी पत्नी की हत्या कर दी जाती है, और छोटा भाई अपनी पत्नी को इस अपराध का आरोपी ठहरा देता है। यह कहानी स्त्री के बलिदान, धोखे और न्याय के अभाव को दर्शाती है। नाटक में यह दिखाया गया कि कैसे पति के हाथों छली गई स्त्री अपने जीवन को समाप्त कर लेती है, और वह न अपने पिता की रह पाती है, न पति की। इस कहानी ने दर्शकों के मन में गहरी संवेदना उत्पन्न की और स्त्री की पीड़ा को बड़े मार्मिक ढंग से प्रस्तुत किया।
‘अंतिम प्यार’ एक चित्रकार की कहानी है, जो अपनी अद्वितीय रचना की चाहत में सामाजिक रूढ़ियों और मान्यताओं से संघर्ष करता है। इस कहानी में कला और समाज के बीच के अनवरत द्वंद को प्रभावी ढंग से प्रस्तुत किया गया। चित्रकार की अद्वितीय रचना के प्रति उसकी दृढ़ता और समाज द्वारा उस पर लगाए गए प्रतिबंधों के बीच की टकराहट ने दर्शकों को कला के महत्व और उसके लिए किए जाने वाले संघर्ष की याद दिलाई।
‘त्याग’ दो ब्राह्मणों की कहानी है, जो समाज की धार्मिक और जातिगत बेड़ियों में जकड़े हुए हैं। यह कहानी एक ब्राह्मण, प्यारी शंकर, की है, जो अपनी बेटी की शादी एक चोर के साथ करने के लिए मजबूर होता है और फिर उसे समाज और जाति से बहिष्कृत कर दिया जाता है। प्यारी शंकर अपनी बेटी की शादी कराने के बाद गांव और जाति को छोड़ देता है और अपने अपमान का बदला लेने का प्रण करता है। यह कहानी दिखाती है कि कैसे जाति और धर्म की बेड़ियों ने समाज को बांध रखा है और इंसान की स्वतंत्रता को छीन लिया है।
रवींद्रनाथ टैगोर का साहित्य व्यापक और विविधतापूर्ण है, जिसमें मानव जीवन के हर पहलू को छुआ गया है। उनकी कहानियों को मंच पर जीवंत करना एक चुनौतीपूर्ण कार्य है, लेकिन मनोज नायर के निर्देशन में यह प्रस्तुति पूरी तरह से सफल रही। नाटक में प्रत्येक कहानी के किरदार, परिवेश और काल को समझने के लिए कलाकारों ने गहन अभ्यास किया था। उन्होंने टैगोर की कहानियों के आंतरिक मर्म को यथार्थवाद के साथ शैलीबद्ध व्यवहार में प्रस्तुत करने का प्रयास किया, जो दर्शकों को भावनात्मक रूप से छू गया।
नाटक की प्रस्तुति में कोलकाता की प्रसिद्ध थिएटर आर्टिस्ट, संजिता मुखर्जी ने अपने बाउल गायन से एक विशेष आकर्षण जोड़ा। उनके गायन ने नाटक की गंभीरता को और भी गहराई दी और दर्शकों को बंगाल की सांस्कृतिक धरोहर से परिचित कराया। संजिता मुखर्जी की आवाज ने नाटक के हर दृश्य को और भी प्रभावी बना दिया, जिससे दर्शक पूरी तरह से नाटक में खो गए। उनके साथ संगीत एवं गायन में अभी श्रीवास्तव, ताल वाद्य और पर्कशन में जय खरे और रश्मि कुकरेती तथा गिटार पर स्वप्निल प्रधान ने भी अपने संगीत से दर्शकों का दिल जीत लिया।
नाटक में शामिल सभी कलाकारों ने अपनी भूमिका को बेहद कुशलता से निभाया। ‘सजा’ में अनिमेष सावंत, अनुष्का रणदिवे, नेहा यादव और विराज नाईक ने अपनी अदाकारी से दर्शकों को स्तब्ध कर दिया। ‘अंतिम प्यार’ में शिवम शर्मा, विशाल भाटी, कंचन विश्वास और अर्चना केसरवानी ने चित्रकार के संघर्ष को बेहतरीन ढंग से पेश किया। ‘त्याग’ में प्रीति बिरहा, अमरेश कुमार, प्रकाश कुमार और विजय आर जांगिड़ ने जातिगत बेड़ियों की जकड़न को प्रभावी तरीके से दर्शाया। ‘धन की भेंट’ में अनुराग तिवारी, साहिल वर्मा, करिश्मा बोरो और राम प्रताप सिंह ने कहानी के मार्मिक क्षणों को जिंदा कर दिया। इन सभी कलाकारों की मेहनत और उनकी नाटकीय प्रतिभा ने नाटक को एक अविस्मरणीय अनुभव बना दिया।
नाटक के प्रस्तुति को सफल बनाने में तकनीकी टीम का भी अहम योगदान रहा। प्रकाश परिकल्पना में धनेन्द्र कावड़े, वस्त्र विन्यास में स्मिता नायर और मंच पार्श्व में सहयोग करने वाले हैदर अली, मार्क फर्नाडीस और अन्य सदस्यों ने नाटक की प्रस्तुति को और भी प्रभावी बना दिया। नाटक के पोस्टर और ब्रोशर डिजाईन में जय खरे और शेख इक्तेदार (साहिल) ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
‘रबीन्द्र वाचनालय’ की यह प्रस्तुति दर्शकों के लिए एक यादगार अनुभव साबित हुई। नाटक के अंत में दर्शकों ने कलाकारों और निर्देशक की सराहना की और उन्हें इस शानदार नाटक के लिए बधाई दी। कई दर्शकों ने कहा कि यह नाटक उन्हें रवींद्रनाथ टैगोर के साहित्य की गहराई और उसकी प्रासंगिकता को और भी बेहतर ढंग से समझने में मदद करेगा।
इस नाट्य प्रस्तुति ने रवींद्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय के सांस्कृतिक कार्यक्रमों में एक और महत्वपूर्ण अध्याय जोड़ दिया। टैगोर राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय ने इस नाटक के माध्यम से यह साबित कर दिया कि वह न केवल शिक्षा के क्षेत्र में, बल्कि कला और संस्कृति के क्षेत्र में भी उत्कृष्टता की दिशा में अग्रसर है।
इस नाटक ने शहीद भवन में उपस्थित सभी दर्शकों के दिलों में एक गहरी छाप छोड़ी और उन्हें गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर के साहित्य की अमरता का अहसास कराया।
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