भोपाल। इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मानव संग्रहालय में 17 और 18 अगस्त को "बघेली रंग फुहार" नामक दो दिवसीय सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस आयोजन ने बघेली लोक संस्कृति की अद्वितीय धरोहर को जीवंत कर दिया। बघेली गीतों और नृत्यों की विभिन्न प्रस्तुतियों ने दर्शकों को बघेलखंड की समृद्ध संस्कृति से रूबरू कराया। कार्यक्रम में शामिल हर प्रस्तुति ने न केवल दर्शकों का मन मोह लिया, बल्कि उन्हें बघेली परंपराओं की गहराई और उसके विविध पहलुओं से भी परिचित कराया।
इस कार्यक्रम में बघेली लोकगीतों की विभिन्न शैलियों की प्रस्तुति दी गई, जो बघेली संस्कृति की गहराई और उसकी विविधता को उजागर करती हैं। बधाई गीत: शारदा देवी की स्तुति: "माई शारदा" तुलसी महरानी: "हरी की पटरानी" जौहार गीत: "साहब सलाम" सोहाग गीत:"लालन को कह लजवाया भीतर चला दुल्हन" हरदी गीत: "बनना के चढ़ रहा हरदी तेल" बननी गीत: "धीरे-धीरे रेंगो बननी लागन नजरिया" परछावन गीत: "धीरे किहा हो परछनिया" दुआर गीत: "लालन को कह लजवाया भीतर चला दुल्हन" गारी गीत: "खानां बंद करा समधी सुनां गारी" राई नाच: "बोदी-चमके लिलार कबरा के बड़ी" सोहर गीत: "एक फल फुले कासी ता बनारस" हिंदुली गीत: "बरसा है पनिया थिरिकुरे गोदुली" टप्पा गीत: "पान खाए ले मनोजी खैरजहां आय" "चोरी चली नेहर का बखरी दे दुनियां" वर्षा गीत: "कुम्हर रे चारों खुट का बाखर" धान रोपाई गीत: "धान रोपाई" बिरहा गीत: "बिरहा गीत की प्रस्तुति" झूला गीत: "झूला पड़ा कदम की डाली झूले श्यामा प्यारी नी"।
इस आयोजन का मुख्य आकर्षण बघेली लोकगीतों और नृत्यों की विविध प्रस्तुतियां रहीं, जो बघेली संस्कृति की गहराई और उसकी अनूठी विशेषताओं को दर्शाती हैं। बधाई गीतों में "माई शारदा" और "हरी की पटरानी" की मधुर धुनें श्रोताओं के मन में धार्मिक भावनाओं को जाग्रत करती हैं। इन गीतों में बघेलखंड की देवी-देवताओं की स्तुति और उनकी महिमा का वर्णन किया गया। इसके अलावा, जौहार गीत "साहब सलाम" ने बघेली समाज की सामाजिक परंपराओं को दर्शाया, जहां सम्मान और आदर की भावनाएं गहरे से जुड़े होती हैं। सोहाग गीत, हरदी गीत, बननी गीत और परछावन गीत ने बघेलखंड के विवाह संस्कारों की खूबसूरत झलक पेश की। इन गीतों में शादी के हर चरण को अत्यंत भावुक और हर्षित माहौल में प्रस्तुत किया गया। राई नाच और गारी गीतों की प्रस्तुतियों ने दर्शकों का भरपूर मनोरंजन किया। "बोदी-चमके लिलार कबरा के बड़ी" जैसे राई नाच की प्रस्तुति ने नर्तकियों की जीवंतता और जोश को दर्शाया। वहीं, गारी गीत "खानां बंद करा समधी सुनां गारी" ने शादी-ब्याह के दौरान की जाने वाली परंपरागत नोक-झोंक को खूबसूरती से प्रस्तुत किया।
इस कार्यक्रम में सावन के झूले भी विशेष आकर्षण का केंद्र रहे। संग्रहालय के परिसर में सावन के कई झूले लगाए गए थे, जहां दर्शकों ने गीतों की मधुर धुनों के साथ झूलों का आनंद लिया। हिंदुली और झूला गीतों की प्रस्तुतियों ने सावन की मस्ती और उमंग को और भी बढ़ा दिया। "बरसा है पनिया थिरिकुरे गोदुली" और "झूला पड़ा कदम की डाली झूले श्यामा प्यारी नी" जैसे गीतों ने दर्शकों को मानसून की सौगातों से सराबोर कर दिया।
कार्यक्रम के अंत में, संग्रहालय के निदेशक प्रोफेसर अमिताभ पांडे और कार्यक्रम के समन्वयक राजेंद्र झारिया ने उपस्थित सभी दर्शकों का धन्यवाद किया। उन्होंने इस कार्यक्रम की सफलता पर खुशी जताई और बताया कि इस तरह के और भी कार्यक्रमों का आयोजन संग्रहालय में भविष्य में किया जाएगा। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि बघेली संस्कृति जैसी समृद्ध धरोहरों को सहेजने और उन्हें आने वाली पीढ़ियों तक पहुंचाने के लिए इस तरह के आयोजनों का होना बेहद जरूरी है।
"बघेली रंग फुहार" कार्यक्रम ने न केवल बघेलखंड की समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर को प्रदर्शित किया, बल्कि दर्शकों को एक अविस्मरणीय अनुभव भी प्रदान किया। इस आयोजन के माध्यम से, बघेली लोकसंस्कृति की गहरी और समृद्ध परंपराओं का जश्न मनाया गया, जिसने दर्शकों के दिलों में बघेलखंड की अद्वितीय धरोहर के प्रति सम्मान और गर्व की भावना जाग्रत की।
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