भोपाल। भगवान श्रीराम और उनके द्वारा स्थापित आदर्शों की कथाएं हमें हमेशा प्रेरित करती हैं, और इन्हीं आदर्शों के साथ जुड़ी एक अनूठी कथा है ओरछा की रानी गणेशकुंवरि की यात्रा। इस कथानक को सुनकर हम देखते हैं कि कैसे एक अनन्य भक्त ने भगवान राम के प्रति अपनी अद्वितीय भक्ति को प्रकट किया और उनके द्वारा स्थापित आदर्शों को अपने जीवन में अपनाया। इस कथानक का आरंभ होता है एलबीटी के मंच पर श्रीराम की अनन्य भक्त रानी गणेशकुंवरि पहली बार श्रीराम की मूर्ति विराजित करती हैं। यह नाटक 'ओरछा के राम' में दर्शकों को एक अद्वितीय यात्रा पर ले जाया जाता है, जिसमें रानी गणेशकुंवरि की भक्ति और समर्पण की कहानी है। इस नाटक की तैयारी की जा रही थी आठ माह पहले से, लेकिन इस दौरान निर्देशक प्रदीप अहिरवार का आकस्मिक निधन हो गया। इसके बाद, अदनान खान के सह-निर्देशन में नाटक तैयार किया गया। स्व. प्रदीप अहिरवार को शो से पहले कलाकारों ने श्रद्धांजलि अर्पित की, जिससे नाटक की शुरुआत एक भावनात्मक माहौल में हुई।
रानी गणेशकुंवरि ने राजा मधुकरशाह की चुनौती की स्वीकार
नाटक के माध्यम से हमें रानी गणेशकुंवरि की यात्रा का अद्वितीय अनुभव होता है। इसमें दिखाया जाता है कि कैसे मधुकर शाह की रानी गणेशकुंवरि, जो ग्वालियर के परमार वंश में जन्मी थीं, एक विशेष परिस्थिति में रामभक्त राजपूतानी बन गईं। उन दिनों, अयोध्या अपने विपत्ति काल से गुजर रही थी और एक दिन राजा मधुकरशाह ने रानी को चुनौती दी। उन्होंने कहा,अगर तुम सच्ची रामभक्त हो, तो राम को अयोध्या से ओरछा क्यों नहीं ले आती? रानी ने इस चुनौती को स्वीकार किया और सन् 1573 के आषाढ़ माह में भगवान राम को ओरछा लाने का संकल्प किया।
500 किमी की यात्रा करके भगवान की प्रतिमा साथ लाई रानी
रानी गणेशकुंवरि की यात्रा ने अपने आस-पास के लोगों को भी प्रभावित किया। उन्होंने साधु-संतों और महिलाओं के बड़े काफिले के साथ अयोध्या से ओरछा की ओर रुख किया। पांच सौ किमी दूर यात्रा करते हुए, रानी गणेशकुंवरि ने भगवान राम की प्रतिमा को साथ लिया और अपने साथी कलाकारों के साथ एक महान नृत्य प्रस्तुत किया। यात्रा का हर क्षण मधुरता से भरा था, और नाटक में दर्शकों को सरयू नदी के मनोहर दृश्य को मंच पर लाइट के इफैक्ट्स के माध्यम से खूबसूरती से प्रस्तुत किया गया। नाटक के सह-निर्देशक अदनान ने बताया कि नाटक में करीब 3 मिनट का सरयू नदी का सीन है, जिसमें इफैक्ट क्रिएट करने के लिए मुंबई से स्पेशल लाइट्स लाए गए हैं और बैकग्राउंड में आठ कलाकारों के सहयोग से इसे अद्वितीयता से प्रस्तुत किया गया है।
भक्ति और समर्पण का मार्ग चुनने से मिलती हैं ऊंचाइयां
नाटक के जरिए
हमें यह अनुभव होता है कि कैसे रानी गणेशकुंवरि ने अपनी शक्ति और साहस से भरी
यात्रा करके भगवान राम को ओरछा लाने का संकल्प किया और अपने राज्य को भगवान राम के
रूप में मान्यता दी। इस कथा के माध्यम से हमें यह सिखने को मिलता है कि अगर हम
अपनी भक्ति और समर्पण के साथ सच्ची मेहनत करते हैं, तो हम किसी भी चुनौती को पार कर सकते हैं और अपने जीवन को
एक महान दिशा में मोड़ सकते हैं। इस प्रेरणादायक नाटक ने दर्शकों को भगवान राम की
भक्ति में रुचि बढ़ाने का एक नया तरीका प्रदान किया है और हमें यह याद दिलाया है कि
भक्ति और समर्पण का सही मार्ग चुनने से ही हम अद्वितीयता की ऊंचाइयों तक पहुंच
सकते हैं।
Subscribe to our newsletter for daily updates and stay informed
© indianewsvista.in. All Rights Reserved.