सत्य

सत्य को जानने के लिए विवेक और वैराग्य होना आवश्यक है : श्रीएम

दो दिवसीय एकात्म पर्व का समापन, पद्म भूषण श्री एम से अभिनेता नितीश भारद्वाज ने किया रोचक संवाद

भोपाल। भारत भावन भोपाल में आचार्य शंकर सांस्कृतिक एकता न्यास, संस्कृति विभाग द्वारा आयोजित दो दिवसीय एकात्म पर्व का रविवार को समापन हुआ। दो दिवसीय एकात्म पर्व के पहले दिन प्रख्यात वेदांती, पद्म भूषण श्री एम ने न्यास के प्रकल्प 'शंकर व्याख्यानमाला' के 70वें संस्करण को संबोधित करते हुए 'शक्ति और अद्वैत वेदांत' विषय पर विचार रखे। वहीं दूसरे दिन समापन अवसर पर न्यास द्वारा एकात्म संवाद आयोजन किया गया। जिसमें पद्म भूषण श्री एम ने विख्यात टेलीविजन अभिनेता व वेदांत साधक नितीश भारद्वाज के संयोजन में वेदांत की जिज्ञासाओं पर रोचक संवाद किया, जिसमें प्रमुख सचिव संस्कृति शिवशेखर शुक्ला, पद्मश्री कपिल तिवारी, पूर्व सीबीआई निदेशक ऋषि प्रसाद शुक्ला सहित बौद्धिक जगत के प्रख्यात हस्तियां श्रोता के रूप में सम्मिलित हुईं। 


एकात्म संवाद में श्रीएम से प्रश्न करते हुए नितीश भारद्वाज ने पूछा कि - संसार में इतना भेद है, फिर अद्वैत क्या है? इसका उत्तर देते हुए श्रीएम ने कहा कि - मनुष्य अपनी इंद्रियों के बहुत अधिक वश में हैं, इसलिए हम नाम आदि पहचानों के साथ जीते हैं। द्वैत भाव में जीते हैं और यह अचानक संभव भी नहीं कि इंद्रियों के वशीभूत होते हुए हम अद्वैत का अनुभव कर सकें। अद्वैत ब्रह्म को अनुभूत करने के लिए इंद्रियों से परे जाना होगा। सामान्य मनुष्य द्वैत भाव में जीवन जीता है। वह द्वैत से प्रारंभ करता है। वह स्वयं को जीव मानता है और ब्रह्म को प्राप्त करना चाहता है। जबकि शुद्ध अद्वैत दर्शन में जीव कुछ होता ही नहीं, केवल ब्रह्म ही एक सत्य है। जीव तो केवल एक सिद्धांत है, जो माया के कारण जान पड़ता है। जब हम इस माया से परे जाते हैं, तब हम परम् ब्रह्म को जानने की ओर अग्रसर होते हैं जो  कि एकमात्र सत्य है। इस सत्य को खोजने के लिए विवेक और वैराग्य होना आवश्यक है। उन्होंने आगे कहा कि - वेद, उपनिषद, शास्र, श्रुति, स्मृति पुराण सबका एक ही सार है, वो है 'अद्वैत ब्रह्म'। ऋग्वेद में कहा गया है - एकं सत्, विप्रा वहुधा वदन्ति, अर्थात सत्य केवल एक है, वह अद्वैत ब्रह्म।

शिव और शक्ति की महिमा बताते हुए उन्होंने कहा कि जब सारा संसार शांत है,जब उसमें कोई गति नहीं होती तब वह शिव है, और जैसे ही संसार में किसी भी तरह की गति होती है, सक्रियता होती है, तब वह शक्ति के कारण होती है।

श्रोताओं के प्रश्न का उत्तर देते हुए श्रीएम ने कहा कि वेदांत अध्ययन या आध्यात्मिक उन्नति के लिए स्वच्छता अत्यधिक आवश्यक है। चाहे वह मन की हो, शरीर की हो या खासकर वातावरण और पर्यावरण की।


जो सन्यास, ज्ञान, भक्ति मार्ग में जाते हैं उनकी संसार से अरुचि हो जाती है? इस प्रश्न के उत्तर में श्रीएम ने कहा कि ऐसा बिल्कुल नहीं है, जो इन मार्गों पर सच्चे अर्थों में चलता है, उनके अंदर संसार के प्रति श्रेष्ठ भावना, करूणा, ममता और दया होती है। जो सांसारिक लोगों से भी अधिक होती है। बस अंतर यह होता है कि वह इन मानवीय भावनाओं में आशक्त नहीं होते। ध्यान प्रक्रिया के विषय में संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि ध्यान की कोई एक स्पष्ट प्रक्रिया नहीं बतलाई गई है। जो लोग ध्यान करना चाहते हैं, वह संगीत को माध्यम बना सकते हैं। संगीत एकाग्रता लाता है, और वह ध्यान की पहली सीढ़ी है।

शंकर दूतों ने किया टोटकाष्टकम् का गान 

सभागार में कार्यक्रम के शुभारंभ अवसर पर न्यास के प्रकल्प अद्वैत युवा जागरण शिविर के उपरांत दीक्षित शंकर दूतों के समूह ने टोटकाष्टकम् का गान कर सभी को मंत्रमुग्ध किया। अंत में आयोजन का आभार डॉ भावना व्यास ने किया। 


चित्रों पर उकेरे सौंदर्यलहरी के स्तोत्र, शक्ति प्रदर्शनी सजायी

शंकर न्यास के एकात्म पर्व में भारत भवन सभागार के मुख्य द्वार पर “शक्ति” प्रदर्शनी भी सजायी गई, जिसका श्री एम ने आयोजन के पूर्व शुभारंभ कर अवलोकन किया। इस प्रदर्शनी में आचार्य शंकर प्रवर्तित अद्वैत वेदान्त दर्शन में शक्ति का क्या स्थान है इस विषय पर प्रकाश डाला गया है। साथ ही आचार्य शंकर प्रणीत शक्ति तत्त्व पर आधारित स्तोत्र सौन्दर्यलहरी पर चित्र भी प्रदर्शित किये गए हैं। मैसूर, कर्णाटक के गंजिफा शैली के प्रसिद्ध चित्रकार रघुपति भट्ट द्वारा बनाये गये 25 चित्रों को सौन्दर्यलहरी के श्लोक और अर्थ सहित प्रदर्शनी में सजाया गया है।

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