पाठ्यक्रम

पाठ्यक्रम को स्थानीय भाषा में तैयार करते समय शब्दावली का रखना होगा विशेष ध्यान : पद्श्री शास्त्री

दो दिवसीय राष्ट्रीय हिंदी विज्ञान सम्मेलन का हुआ समापन, अंतिम दिन विभिन्न विषयों पर हुआ सत्रो का आयोजन

भोपाल। मुझे यह बताते हुए प्रसन्नता है कि केंद्र सरकार ने पिछले वर्ष भाषा के क्षेत्र में एक बड़ा फैसला लिया और तय किया गया कि सभी पाठ्यक्रम को स्थानीय भाषाओं में शुरू किया जाये। इसके लिये स्थानीय भाषा में पाठ्य पुस्तक तैयार करने का कार्य भी शुरू हो गया है। भारत में लगभग 22 स्थानीय भाषाएं हैं जिनके लिये पाठ्यक्रम तैयार करना एक बड़ी चुनौती है। यह चुनौती तब और भी अधिक बड़ी हो जाती है क्योंकि आज देश में लगभग 25 हजार पाठ्यक्रम संचालित किये जा रहे हैं। आईआईटी दिल्ली में ही प्रथम और द्दितीय वर्ष में 1600 पाठ्यक्रम संचालित हो रहे हैं। यह बात वरिष्ठ शिक्षाविद् और पद्श्री से सम्मानित चमू कृष्ण शास्त्री ने कही। श्री शास्त्री सीएसआईआर एम्प्री में आयोजित राष्ट्रीय हिंदी विज्ञान सम्मेलन के अंतिम दिन बतौर मुख्य वक्ता उपस्थित थे। इस दौरान उन्होंने विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी क्षेत्र में हिंदी भाषा का प्रयोग, चुनौतियां एवं समाधान विषय पर चर्चा कर रहे थे। सीएसआईआर एम्प्री और विज्ञान भारती मध्य भारत प्रांत के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित इस सम्मेलन को संबोधित करते हुए श्री शास्त्री ने कहा कि जब हमें इतने बड़े पाठ्यक्रम को स्थानीय भाषा में तैयार करना है तो हमें शब्दावली का विशेष ध्यान रखना होगा। उन्होंने कहा कि वर्तमान में पूरा ईको सिस्टम अंग्रेजी भाषा सेंट्रिक है। कर्नाटक में लगभग 10 प्रतिशत छात्र स्थानीय भाषा को छोड़कर अंग्रेजी भाषा की ओर शिफ्ट हो गये। उन्होंने कहा कि वर्ष 2022 के आंकड़े बताते हैं कि लगभग 2 करोड़ बच्चे अंग्रेजी भाषा की ओर शिफ्ट हुए हैं जो कहीं न कहीं चिंता का विषय भी है। इस सत्र का संचालन सम्मेलन के संयोजक और एम्प्री के मुख्य वैज्ञानिक डॉ. जेपी शुक्ल ने किया।


संकल्पित होकर जागरुकता लानी होगी

इस अवसर पर विज्ञान भारती के सुधीर सिंह भदौरिया ने कहा कि हमारे लिये बड़ी चुनौति है कि हम विज्ञानए तकनीक और नवाचार से देश को समृद्ध तो बना रहे हैं। लेकिन तकनीक के क्षेत्र में आज भी अंग्रेजी भाषा की अधिकता बहुत है। उन्होंने कहा कि हमारे लिये चिंता का विषय है कि पिछले 75 वर्षों में हमारे मन में यह विचार क्यों नहीं आया कि हमें विज्ञान एवं तकनीक के क्षेत्र में अपनी भाषा को महत्व देना चाहिए। लोगों में आम धारणा है कि अंग्रेजी पढ़ने वाले लोग ही विज्ञान एवं तकनीक के क्षेत्र में आगे बढ़ सकते हैं यह धारणा हमें बदलने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि हमें संकल्पित होकर समाज में जागरुकता लाने की आवश्यकता है।


सॉल्यूशन बहुत आवश्यक है

इस अवसर पर एम्प्री के निदेशक प्रो. अवनीश कुमार श्रीवास्तव ने कहा कि विज्ञान के क्षेत्र में हिंदी भाषा की सहभागिता को अगर बढ़ाना है तो उसके लिये आवश्यक है कि अब हम चर्चा में नहीं बल्कि इसके सॉल्यूशन पर जायें। उन्होंने यूजीसी का उदाहरण देते हुए कहा कि अगर यूजीसी एक गाइडलाइन जारी करके रिसर्च और पीएचडी करने वाले स्कॉलर्स को निर्देश दे कि पांच में से एक पेपर हिंदी भाषा में प्रकाशित करना होगा। यही नहीं अभी तक जो जर्नल प्रकाशित हुए हैं उनका हिंदी में अनुवाद करना चाहिए। सप्रे संग्रहालय के निदेशक पद्श्री विजयदत्त श्रीधर ने कहा कि हिंदी को राजभाषा का दर्जा दिलाने वाले लोग स्वयं हिंदी भाषी नहीं थे, लेकिन उन्होंने हिंदी भाषा को हमेशा सम्मान किया। उन्होंने कहा कि हम सबको वैज्ञानिक नहीं बना सकते हैं लेकिन हम विज्ञान के प्रति समझ विकसित कर सकते हैं।


देश को उन्नत होने के लिए कृषि बहुत बड़ा रास्ता है

विकसित भारत हेतु उन्नत कृषि प्रौद्योगिकी विषय पर डॉ. एचवी वर्मा ने कहा कि किसानों को जैविक खेती के प्रति जागरूक होना चाहिए। जैविक उत्पादन में फूल और सब्जी की ओर किसान भाइयों का जाना होगा। आज लाखों के पैकेज छोड़ कर युवाओं खेती की ओर आ रहे हैं और अच्छा काम भी कर रहे हैं। उसके पीछे कारण है कि उन्हें पूरी जानकारी है कि वो क्या करना चाहती हैए जिस खेती को वो कर रहे हैं उसकी पूरी जानकारी पहले लेते हैं फिर वो खेती की तरफ आ रहे हैं।



युवाओं को स्मार्ट कृषि की तरफ लेकर आना होगा

सत्र की अध्यक्षता कर रहे प्रमोद कुमार वर्मा ने कहा कि हमें 25.35 साल के बच्चों को स्मार्ट कृषि सिखाना चाहिए और इसको लेकर उनकी समझ बढ़ाना चाहिए। उन्होंने कहा कि ये बहुत जरूरी है कि कभी सिंगल, कभी मल्टी और कभी कॉर्पोरेट की तरह कृषि में काम करने चाहिए, जैसे पूरी दुनिया का कार्य का पैमाना तय है वैसे ही हमें भी कृषि में पैमाने तय करना चाहिए। विज्ञान भारती के  सोमदेव भरद्वाज ने कहा कि पंजाब के भटिंडा से एक ट्रेन जयपुर जाती है जिसका नाम है कैंसर ट्रेन, ये ट्रेन पूरी भरकर जाती है। उस क्षेत्र में कैंसर अधिक होता है। पंजाब में बहुत खेती होती है तो उपजाऊ खेती में कैंसर क्यों हो रहा है। इसका मुख्य कारण है कि वहां 500-700 फीट नीचे से पानी खींचकर निकाला जाता है। जिसमें रेडियोएक्टिव पानी में पाया गया है। 



भौतिक और आध्यात्मिक दृष्टि प्राप्त होती है उसे धर्म कहते हैं

अध्यात्म एवं विज्ञान विषय पर हुए सत्र में महर्षि पाणिनि संस्कृत एवं वैदिक विवि उज्जैन के कुलगुरु प्रो. विजय कुमार ने कहा कि वेदों में विज्ञान है ये बात सब जानते हैं, लेकिन मानने से पीछे हट जाते हैं। उसका मुख्य कारण है कि संस्कृत का ज्ञान वो लोग भी अब देने लगे हैं जिन्होंने कभी संस्कृत को पढ़ाया नहीं कभी ग्रंथ और वेदों की जानकारी प्राप्त नहीं की, बहुत बड़ी टीम इसके खिलाफ काम कर रही है। उन्होंने कहा कि संस्कृत विज्ञान की भाषा है, मुझे खुशी है कि अब संस्कृत और विज्ञान विषयों पर कई क्षेत्रों में चर्चा हो रही है इसको लेकर बात हो रही है।

India News Vista
64

Newsletter

Subscribe to our newsletter for daily updates and stay informed

Feel free to opt out anytime
Get In Touch

+91 99816 65113

[email protected]

Follow Us

© indianewsvista.in. All Rights Reserved.