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मैनिट में महिला सदस्यों ने हरतालिका तीज पर दिया पर्यावरण और सांस्कृतिक संरक्षण का संदेश

महिला सदस्यों ने पारंपरिक परिधानों में गीत-संगीत और कहानियों के साथ मनाई तीज

भोपाल। मौलाना आजाद राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान (मैनिट) में हरतालिका तीज का त्योहार इस बार एक खास संदेश के साथ मनाया गया। महिला संकाय सदस्यों ने पारंपरिक उत्सव को न केवल अपने सांस्कृतिक मूल्यों के साथ जोड़ा, बल्कि पर्यावरण जागरूकता के साथ भी इसे एक नए आयाम पर ले जाने का प्रयास किया। यह अनोखा उत्सव सांस्कृतिक एकता और संधारणीय जीवनशैली की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम साबित हुआ।

हरतालिका तीज का त्योहार, जो मुख्य रूप से महिलाओं द्वारा मनाया जाता है, एक ऐसा अवसर है जो भक्ति, प्रेम और विवाह के पवित्र बंधन का जश्न मनाता है। मैनिट की महिला संकाय सदस्यों ने इस त्योहार को पारंपरिक अनुष्ठानों के साथ मनाते हुए समाज और पर्यावरण के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को भी उजागर किया। कार्यक्रम में कई सांस्कृतिक गतिविधियां शामिल थीं, जैसे लोकगीत गाना, कहानी सुनाना और पारंपरिक पोशाक में अनुष्ठान करना। यह सभी गतिविधियां भारतीय संस्कृति की समृद्ध विरासत को दर्शाती हैं और इस उत्सव के माध्यम से सांस्कृतिक संरक्षण का संदेश फैलाया गया।

सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण की दिशा में एक कदम

हरतालिका तीज केवल एक धार्मिक त्योहार नहीं है, बल्कि यह हमारे समाज की सांस्कृतिक धरोहर का प्रतीक है। मैनिट की महिला संकाय सदस्यों ने इस मौके पर न केवल पारंपरिक रूप से त्योहार मनाया, बल्कि इस बात पर भी जोर दिया कि सांस्कृतिक धरोहर को बनाए रखना क्यों आवश्यक है। लोकगीत गाने और पारंपरिक अनुष्ठानों में भाग लेकर उन्होंने यह सुनिश्चित किया कि यह प्राचीन पर्व आने वाली पीढ़ियों के लिए संरक्षित रहे। इस अवसर पर उन्होंने अपने विचार साझा किए कि कैसे ये सांस्कृतिक गतिविधियां न केवल हमारे अतीत से हमें जोड़ती हैं, बल्कि हमारे समाज को एकजुट करती हैं और उसमें सामंजस्य बनाए रखती हैं।


पर्यावरण संरक्षण की जागरूकता

हरतालिका तीज के उत्सव में इस बार पर्यावरण संरक्षण पर विशेष ध्यान दिया गया। त्योहारों के दौरान होने वाले प्लास्टिक और अन्य हानिकारक सामग्रियों के उपयोग से पर्यावरण को भारी नुकसान होता है। इसे ध्यान में रखते हुए, महिला संकाय सदस्यों ने इस अवसर का उपयोग पर्यावरण के अनुकूल प्रथाओं के महत्व पर जागरूकता फैलाने के लिए किया। उन्होंने यह बात भी रेखांकित की कि हमें त्योहारों को मनाने के दौरान पर्यावरण के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए।

इस संदर्भ में कार्यक्रम के दौरान प्लास्टिक के उपयोग को कम करने, पेड़ लगाने और बायोडिग्रेडेबल सामग्रियों के उपयोग को प्रोत्साहित करने के उपायों पर चर्चा की गई। महिला संकाय सदस्यों ने त्योहारों में प्लास्टिक की जगह मिट्टी के बर्तनों, प्राकृतिक रंगों और पर्यावरण के अनुकूल सजावट सामग्री का उपयोग करने की बात कही। इस दिशा में उन्होंने प्रतिज्ञा भी ली कि वे पर्यावरण को सुरक्षित रखने के लिए इस तरह के कदम उठाएंगी।

संयुक्त प्रयास और भविष्य की दिशा

कार्यक्रम के दौरान मैनिट महिला क्लब की सक्रिय सदस्य सरिता शुक्ला ने एक प्रेरणादायक भाषण दिया। उन्होंने कहा पारंपरिक तरीके से हरतालिका तीज मनाने से हम अपनी जड़ों से जुड़ते हैं। लेकिन इसके साथ हमें यह भी याद रखना चाहिए कि हमारी सांस्कृतिक विरासत हमें प्रकृति के साथ सामंजस्य स्थापित करना सिखाती है। आज के समय में पर्यावरण संरक्षण उतना ही महत्वपूर्ण है जितना कि हमारी सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित करना। हमें संधारणीय प्रथाओं को अपनाने की दिशा में ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है।

श्रीमती शुक्ला के इस संदेश ने सभी प्रतिभागियों को सोचने पर मजबूर किया कि किस प्रकार हमारी छोटी-छोटी आदतें भी पर्यावरण पर बड़ा असर डाल सकती हैं। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि पर्यावरण की रक्षा के लिए हमें अपने दैनिक जीवन में छोटे लेकिन महत्वपूर्ण बदलाव लाने होंगे, जैसे प्लास्टिक के बजाए पुन: उपयोग योग्य वस्त्रों और सामग्रियों का उपयोग करना, पेड़ लगाना और ऊर्जा की खपत को कम करना।

समापन समारोह और प्रतीकात्मक पौधारोपण

इस महत्वपूर्ण कार्यक्रम का समापन एक प्रतीकात्मक पौधारोपण के साथ हुआ, जो विकास, समृद्धि और पर्यावरण के साथ सामंजस्य का प्रतीक था। मैनिट परिसर में महिला संकाय सदस्यों ने पौधे लगाकर यह संदेश दिया कि जैसे ये पौधे बड़े होकर पर्यावरण को शुद्ध करेंगे, वैसे ही हमारे छोटे प्रयास भी बड़े बदलाव लाने में सहायक हो सकते हैं। पौधारोपण न केवल पर्यावरण के प्रति उनके समर्पण का प्रतीक था, बल्कि यह भविष्य की पीढ़ियों के लिए एक स्थायी और हरा-भरा पर्यावरण छोड़ने का संदेश भी था।


छात्रों और समुदाय के लिए प्रेरणा

मैनिट की महिला संकाय सदस्यों ने अपने इस प्रयास के जरिए न केवल पर्यावरण संरक्षण और सांस्कृतिक विरासत के महत्व को बढ़ावा दिया, बल्कि छात्रों और व्यापक समुदाय के लिए एक प्रेरणास्रोत भी बनीं। उनकी संधारणीय प्रथाओं को अपनाने और पारंपरिक त्योहारों को आधुनिक जीवन के साथ संतुलित करने की यह पहल एक उदाहरण बनकर उभरी है।

उनके इस कदम से यह संदेश स्पष्ट हुआ कि आधुनिकता और परंपराओं के बीच संतुलन बनाए रखते हुए हम समाज में सकारात्मक बदलाव ला सकते हैं। मैनिट का यह आयोजन इस बात का प्रमाण है कि जब हम अपनी सांस्कृतिक धरोहर को संजोते हुए पर्यावरण के प्रति जिम्मेदार बनते हैं, तो हम आने वाली पीढ़ियों के लिए एक उज्जवल और सुरक्षित भविष्य की नींव रख सकते हैं।

छोटे कदम भी ला सकते हैं बड़े बदलाव 

मैनिट में हरतालिका तीज का यह अनूठा उत्सव एक उदाहरण है कि कैसे हम पारंपरिक त्योहारों को पर्यावरण के अनुकूल तरीके से मना सकते हैं। महिला संकाय सदस्यों का यह प्रयास इस बात का प्रमाण है कि छोटे कदम भी बड़े बदलाव ला सकते हैं। उनका यह कदम अन्य संस्थानों और समुदायों के लिए एक प्रेरणा बनेगा कि वे भी अपनी सांस्कृतिक विरासत को संजोते हुए पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूक रहें। 

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