भोपाल। मध्य प्रदेश उर्दू अकादमी, संस्कृति परिषद, संस्कृति विभाग के द्वारा साहित्य में औपनिवेशिक मानसिकता से मुक्ति विषय पर आधारित जश्न-ए- उर्दू के अंतिम दिन प्रादेशिक मुशायरा, फिल्मों में औपनिवेशिक मानसिकता से मुक्ति विषय पर गुफ़्तगू और अखिल भारतीय मुशायरे जैसे कार्यक्रम हुए आयोजित हुए। तीसरे दिन प्रादेशिक मुशायरे का आयोजन हुआ जिसकी अध्यक्षता वरिष्ठ शायर हमीद गौहर ने की एवं इस मुशायरे का संचालन डॉ. जिÞया राना द्वारा किया गया। इस मौके पर हमीद गौहर ने सुनाया, जहां तलक ये जमीं आसमां दिखाई दे, खुदा करे मेरा हिन्दुस्तां दिखाई दे...। वहीं सूफियान काजी ने सुनाया, मरने पर भी वो ताबिंदा रहते हैं, अच्छे लोग दिलों में जिंदा रहते हैं..., शायर आरिफ अली आरिफ ने सुनाया, गर वतन पर जान देते हैं तो होते हैं अमर, क्या समझते हो वतन पर मर के मर जाएंगे हम...। इस मौके पर परवेज अख्तर ने सुनाया, ना तो दौलत ना ही शोहरत अब गगन की चाहिए, चाहिए कुछ तो मुझे माटी वतन की चाहिए..., शोएब अली खान ने सुनाया, जो कल थी यार वही आन-बान है अब भी, हमारे देश की धरती महान है अब भी। इसके अलावा सतीश सत्यार्थ, आदर्श दुबे, शाहनवाज अंसारी ने भी अशआर सुनाएं।
औपनिवेशिक
मानसिकता से मुक्ति के लिए भाषा पर गर्व
निर्देशक रूमी जाफरी ने कहा कि यदि हम सिनेमा में औपनिवेशिक मानसिकता से मुक्ति पाना चाहते हैं तो सबसे पहले हमें अपनी भाषा पर गर्व करना सीखना होगा। यदि हम सिनेमा में अपनी संस्कृति को बचाना चाहते हैं तो हमें ओटीटी की खराब सीरीजों को देखना बंद करना होगा। राजीव वर्मा ने कहा बंगाली थिएटर के कलाकार गिरीश घोष ने अंग्रेजों के विरुद्ध पूरे देश में कई नाटक किएऔर उसके माध्यम से भारतीय संस्कृति और संस्कारों का संदेश आम लोगों तक पहुंचाया क्योंकि अंग्रेजों ने ही सिनेमा में भारतीय संस्कृति को सबसे अधिक नुकसान पहुंचाया था।
शायरों ने श्रोताओं को सुनाएं यह कलाम
जहां तलक ये जमीं आसमां दिखाई दे
खुदा करे मेरा हिन्दुस्तां दिखाई दे
- हमीद गौहर
मरने पर भी वो ताबिंदा रहते हैं
अच्छे लोग दिलों में जिÞन्दा रहते हैं
- सूफियान काजी
गर वतन पर जान देते हैं तो होते हैं अमर
क्या समझते हो वतन पे मर के मर जायेंगे हम
- आरिफ अली आरिफ
ना तो दौलत ना ही शोहरत अब गगन की चाहिए
चाहिए कुछ तो मुझे माटी वतन की चाहिए
- परवेज अख़्तर
देश मेरा नहीं हमारा है
ऐसी मेरी विचार धारा है
- साजिद प्रेमी
लकीरों में कहीं गुम हैं मुकद्दर तक नहीं पहुंचे
अभी पगडंडियों के रास्ते घर तक नहीं पहुंचे
- शाहनवाज अन्सारी
जो कल थी यार वही आन बान है अब भी
हमारे देश की धरती महान है अब भी
- शोएब अली खान
टोकता हूँ न निकला करो धूप में
छांव मेरा कहा मानती ही नहीं
- सतीश सत्यार्थ
ख़्वाब बैठा था समाने मिरे
और मैं ख़्वाब के ख़्याल में था
- विनीत शुक्ला
उसके लिए सवाल उठाये हुए हैं लोग
वो जो हर इक जवाब से आगे की चीज है
- आदर्श दुबे
औपनिवेशिक मानसिकता से मुक्ति विषय पर की गुफ़्तगू
दूसरे सत्र में फिल्मों में औपनिवेशिक मानसिकता से मुक्ति विषय पर गुफ़्तगू हुई जिसमें प्रसिद्ध फिल्म लेखक व निर्देशक रूमी जाफर एवं सुप्रसिद्ध फिल्म अभिनेता व रंग निर्देशक राजीव वर्मा ने फिल्मों में औपनिवेशिक मानसिकता से मुक्ति विषय पर गुफ़्तगू की। इस सत्र का संचालन विनय उपाध्याय द्वारा किया गया।
- रूमी जाफरी ने कहा कि यदि हम सिनेमा में औपनिवेशिक मानसिकता से मुक्ति पाना चाहते हैं तो सबसे पहले हमें अपनी भाषा पर गर्व करना सीखना होगा। हमारी संस्कृति को सबसे ज्यादा नुकसान ओटीटी ने पहुंचाया है यदि हम सिनेमा में अपनी संस्कृति को बचाना चाहते हैं तो हमें ओटीटी की खराब सीरीजों को देखना बंद करना होगा। इस सत्र का संचालन विनय उपाध्याय द्वारा किया गया।
- राजीव वर्मा ने कहा कि सिनेमा में औपनिवेशिक मानसिकता से मुक्ति के लिए सबसे पहले बंगाली थिएटर के कलाकार गिरीश घोष ने कदम उठाया। उन्होंने अंग्रेजों के विरुद्ध पूरे देश में कई नाटक किये और उसके माध्यम से भारतीय संस्कृति और संस्कारों का संदेश आम लोगों तक पहुंचाया क्यूंकि अंग्रेजों ने ही सिनेमा में भारतीय संस्कृति को सबसे अधिक नुकसान पहुंचाया था।
आखिरी सत्र में
कुल हिंद मुशायरा आयोजित हुआ। जिसकी अध्यक्षता भोपाल के वरिष्ठ शायर जफर सहबाई ने
की और संचालन मुईन शादाब द्वारा किया गया। जिन शायरों ने कलाम पेश किया उनके नाम
और अशआर इस प्रकार हैं। मुशायरे के आखिर में उर्दू अकादमी की निदेशक डॉ नुसरत
मेहदी ने तमाम श्रोताओं का आभार व्यक्त किया।
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