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मालदीव से वियतनाम तक: संतोष चौबे की 'चैरी, नाना और हो ची मिन्ह' में ऐतिहासिक यात्रा

संतोष चौबे की नई कहानी ‘चैरी, नाना और हो ची मिन्ह’ का राष्ट्रीय वनमाली सृजन पीठ की आत्मीय गोष्ठी में प्रथम पाठ

भोपाल। वरिष्ठ कथाकार और रबीन्द्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय के कुलाधिपति संतोष चौबे ने अपनी ताजा कहानी 'चैरी, नाना और हो ची मिन्ह' का पहला पाठ राष्ट्रीय वनमाली सृजन पीठ द्वारा आयोजित आत्मीय गोष्ठी में किया। इस अवसर पर साहित्य जगत के कई प्रतिष्ठित नाम उपस्थित रहे, जिन्होंने इस कहानी को लेकर गहन चर्चा की और इसे नई संभावनाओं के साथ एक अनूठी रचना बताया।

यह कहानी चौबे की पहले लिखी गई ‘चैरी और नाना’ का विस्तार है। जहां ‘चैरी और नाना’ में पाठक मालदीव के सामाजिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक परिदृश्यों से अवगत होते हैं, वहीं ‘चैरी, नाना और हो ची मिन्ह’ कहानी वियतनाम की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहर को एक दिलचस्प ट्रैवलॉग के रूप में प्रस्तुत करती है। इसमें वियतनाम के चिन्हित स्थानों, घटनाओं और ऐतिहासिक पृष्ठभूमि को इतनी सूक्ष्मता और प्रांजल भाषा में बुना गया है कि पाठक खुद को वियतनाम की धरती पर महसूस करने लगता है।


कहानी में वियतनाम की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

चौबे की इस नई कहानी की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि वह वियतनाम और भारत की प्राचीन सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धरोहरों को एक साथ उकेरती है। कहानी में वियतनाम के राजनैतिक और सांस्कृतिक परिदृश्य के साथ-साथ वहां की ऐतिहासिक घटनाओं का सुंदर चित्रण किया गया है। इसे एक बेहतरीन ट्रैवलॉग की तरह कहा जा सकता है, जो पाठकों को वियतनाम की गहराइयों तक ले जाता है।

समानांतर कहानियों का जाल

‘चैरी, नाना और हो ची मिन्ह’ की एक और विशेषता यह है कि इसमें कई कहानियां समानांतर रूप से चलती हैं, जो कथा को और भी जीवंत बनाती हैं। प्रेम, करुणा और मानवीय संवेदनाओं से ओतप्रोत यह कहानी जीवन की संभावनाओं और वैश्विक फलक की नई उम्मीदें बुनती है। चैरी के बालमन में उठते सवाल कथा के विशाल वितान को गहराई प्रदान करते हैं।

रचना के साहित्यिक पक्ष

संतोष चौबे की कहानियों का एक प्रमुख पहलू यह है कि वह स्थानीय इतिहास, सांस्कृतिक विरासत और राजनैतिक परिदृश्य को बहुत ही सहज और रोचक भाषा में प्रस्तुत करते हैं। इस कहानी में भी वियतनाम की सांस्कृतिक विरासत और ऐतिहासिक पृष्ठभूमि को करीने से उकेरा गया है। इसके साथ ही, कहानी में वियतनाम और भारत की सांस्कृतिक धरोहर को जोड़कर प्रस्तुत किया गया है, जिससे यह कहानी साहित्यिक और सांस्कृतिक दृष्टि से बेहद समृद्ध हो जाती है।

कार्यक्रम में हुई रचनात्मक चर्चा

राष्ट्रीय वनमाली सृजन पीठ द्वारा आयोजित इस कथा पाठ में कई साहित्यिक हस्तियों ने भाग लिया। वरिष्ठ कथाकार मुकेश वर्मा, वनमाली सृजन केन्द्र की अध्यक्ष डॉ. वीणा सिन्हा, टैगोर विश्व कला एवं संस्कृति केन्द्र के निदेशक विनय उपाध्याय, विश्व रंग सचिवालय के सचिव संजय सिंह राठौर, युवा कथाकार कुणाल सिंह, कवि मोहन सगोरिया, उपन्यासकार संजय सेफर्ड, कवि मुदित श्रीवास्तव सहित कई अन्य प्रमुख साहित्यकार और रचनाकार इस अवसर पर उपस्थित थे।

इस गोष्ठी में चौबे की कहानी पर गहन विमर्श हुआ, जिसमें उनके लेखन की विशिष्टताओं और उनकी कहानी में इतिहास और संस्कृति के तत्वों की विशेष सराहना की गई। अंत में, कार्यक्रम का समन्वय और आभार वनमाली सृजन पीठ की राष्ट्रीय संयोजक ज्योति रघुवंशी द्वारा व्यक्त किया गया।

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