संगीत

संगीत प्रसंग: पं. विष्णु नारायण भातखंडे की स्मृति में सुर, ताल और नृत्य का अनूठा संगम

संगीत प्रसंग में सुर-ताल की सभाएं, कलाकारों की सुदीर्घ साधना से सजी शाम

भोपाल। मध्य प्रदेश संस्कृति विभाग द्वारा महान संगीतज्ञ और आचार्य पंडित विष्णु नारायण भातखंडे की स्मृति में हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी 'संगीत प्रसंग' का आयोजन जनजातीय संग्रहालय में गुरुवार को किया गया। यह आयोजन संगीत, नृत्य और वादन की अद्भुत प्रस्तुतियों से भरपूर रहा, जिसने श्रोताओं को सुरों के संसार में एक गहन अनुभव प्रदान किया।

कार्यक्रम का शुभारंभ और स्वागत समारोह

कार्यक्रम का शुभारंभ पारंपरिक स्वागत के साथ हुआ, जिसमें संस्कृति विभाग के संचालक एनपी नामदेव ने आमंत्रित कलाकारों का स्वागत पुष्पगुच्छ भेंट कर किया। इस अवसर पर समारोह में सहायक संचालक अमित कुमार यादव भी उपस्थित रहे। इस भव्य आयोजन का उद्देश्य भारतीय शास्त्रीय संगीत और नृत्य की विरासत को सहेजने और उसकी स्मृति को जीवित रखने का रहा।


अनिरुद्ध जोशी का सितार वादन

संगीत प्रसंग की पहली प्रस्तुति भोपाल के जाने-माने सितारवादक अनिरुद्ध जोशी की थी। उन्होंने अपनी प्रस्तुति की शुरुआत राग शुद्ध कल्याण से की। जैसे ही उनके सितार के तारों पर सधे हुए हाथों की छुअन से राग की ध्वनियां उत्पन्न हुईं, वैसे ही सभागार में उपस्थित श्रोताओं की आत्मा पर इसका प्रभाव स्पष्ट दिखा।


अनिरुद्ध जोशी ने अपनी प्रस्तुति को आलाप, जोड़ और झाला के माध्यम से राग का विस्तार दिया। यह प्रस्तुति शास्त्रीय संगीत के उन उच्च मानकों को छूती हुई प्रतीत हुई, जहां सुरों का संवाद आत्मा से होता है। इसके बाद उन्होंने तीन ताल में निबद्ध विलंबित और द्रुत गत प्रस्तुत की। राग तिलक कामोद के साथ अपनी प्रस्तुति को विराम देते समय उन्होंने दर्शकों को एक अलौकिक संगीत अनुभव प्रदान किया। उनकी प्रस्तुति में तबले पर संगत कर रहे अशेष उपाध्याय ने भी अपनी कला का प्रदर्शन किया और संगीत के इस संगम को और भी विशेष बना दिया।

विदुषी अश्विनी भिड़े देशपांडे का गायन

सितार वादन के बाद संगीत की सुरमयी यात्रा की अगली कड़ी के रूप में मुंबई की सुप्रसिद्ध गायिका विदुषी अश्विनी भिड़े देशपांडे ने अपने गायन से कार्यक्रम को एक नई ऊंचाई दी। जयपुर-अतरौली घराने की वरिष्ठ गायिका विदुषी अश्विनी भिड़े ने अपने गायन की शुरुआत राग झिंझोटी से की। उनका गायन अत्यंत प्रभावी और शुद्धता से भरा हुआ था, जिसे श्रोताओं ने तालियों की गड़गड़ाहट से सराहा।

इसके बाद उन्होंने राग मालकौंस में अपनी गायन कला का प्रदर्शन किया। विदुषी अश्विनी भिड़े की गहरी आवाज और उनकी गायन शैली ने पूरे सभागार को मंत्रमुग्ध कर दिया। राग मालकौंस की गंभीरता और माधुर्य के बीच विदुषी अश्विनी ने श्रोताओं के सामने एक अद्वितीय संगीतात्मक संसार का सृजन किया। उनकी प्रस्तुति का समापन उन्होंने राग भैरवी में एक भजन गाकर किया, जो श्रोताओं के दिलों को छू गया।



इस अद्भुत गायन में विदुषी अश्विनी के साथ तबले पर यति भागवत, हारमोनियम पर ज्ञानेश्वर सोनवाने और सह-गायन एवं तानपुरे पर ऋतुजा लाड ने संगत दी। उनके साथ इन कलाकारों की संगत ने पूरे प्रदर्शन को और भी जीवंत बना दिया।

कृष्ण कथा और स्त्री जीवन का संगीतात्मक प्रस्तुतीकरण

कार्यक्रम की अंतिम प्रस्तुति में नृत्य की बारी थी, जहां माया कुलश्रेष्ठ और उनके साथियों ने एक संगीतमय कथक नृत्य प्रस्तुत किया। यह प्रस्तुति एक विशेष 'नृत्य बेले' थी, जिसमें कृष्ण के विभिन्न रूपों को कथा के माध्यम से दर्शाया गया। नृत्य की इस कला में उन्होंने स्त्री जीवन में कृष्ण के महत्व और उनके विविध रूपों को अभिव्यक्त किया।

कथक की पारंपरिक शैली में टुकड़े, आमद और तिहाई के माध्यम से नृत्य में विविधता और गहराई को प्रस्तुत किया गया। इस बेले को माया कुलश्रेष्ठ ने स्वयं लिखा और निर्देशित किया था। उनके साथियों दिव्य, अपर्णा, आस्था और रिचा ने भी इस अद्भुत नृत्य प्रस्तुति में भाग लिया। उनका सामूहिक प्रदर्शन एक संगीतात्मक यात्रा थी, जो शास्त्रीय नृत्य और कथा की गहराई को सामने लाया।


श्रोताओं की प्रतिक्रिया और समापन

इस पूरे आयोजन में श्रोताओं ने हर प्रस्तुति का भरपूर आनंद लिया और कलाकारों की प्रतिभा को तालियों से सराहा। 'संगीत प्रसंग' न केवल एक संगीत महोत्सव था, बल्कि यह भारतीय शास्त्रीय संगीत और नृत्य की महत्ता और उसकी जीवंतता को बनाए रखने का एक महत्वपूर्ण प्रयास भी था।

इस कार्यक्रम के माध्यम से शास्त्रीय संगीत और नृत्य की विधाओं को एक मंच प्रदान किया गया, जहां कलाकारों ने अपनी कला का प्रदर्शन किया और श्रोताओं को भारतीय संगीत की समृद्ध परंपरा से जोड़ा। कार्यक्रम के अंत में संचालक एनपी नामदेव ने सभी कलाकारों और श्रोताओं का आभार व्यक्त किया और इस महोत्सव की सफलता की सराहना की।


भारतीय शास्त्रीय संगीत और नृत्य का अनमोल खजाना

'संगीत प्रसंग' जैसे कार्यक्रमों के माध्यम से संस्कृति विभाग और जनजातीय संग्रहालय शास्त्रीय संगीत और नृत्य की धरोहर को सहेजने का महत्वपूर्ण कार्य कर रहे हैं। यह न केवल महान संगीतज्ञ पं. विष्णु नारायण भातखंडे को एक सच्ची श्रद्धांजलि है, बल्कि यह आगामी पीढ़ियों के लिए भी भारतीय संगीत की विरासत को संरक्षित और प्रोत्साहित करने का एक साधन है।

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